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तिलिस्माती मुँदरी


कि वह पूरी तरह बंद नहीं है; उसने किवाड़ आहिस्ता से खोल लिये और भीतर को झांका तो देखा कि वहां एक बड़ा साबाग़ है जिसमें घने पेड़ लगे हुए हैं और वहां कोई शख़्स नहीं है। उसने सोचा कि इस वक्त यहां छिप जाना बनिस्बत उस गली में जाने के बिहतर होगा, क्योंकि क्या मालूम गली कहां को गई है। बस वह बाग़ के भीतर घुस गई और दरवाज़े को वैसा ही अधखुला छोड़ कर सब से नज़दीक के पेड़ों की कुंज में छिपने को लपकी। वहां पहुंची ही थी कि उसको उस दरवाजे के बंद होने की आवाज़ सुनाई दी और उस तरफ़ को झांकने से मालूम हुआ कि वही लौंडी बाहर से वापस आ कर उसको बंद कर रही है और फिर मकान की तरफ कि जिसकी छत बाग़ के दूसरे सिरे पर दिखाई दे रही थी जा रही है। उसने देखा कि यहां कोई खतरा नहीं है, लेकिन तो भी वह एक सर्व के पेड़ पर चढ़ गई जिसकी घनी डालियों में उसे कोई नहीं देख सकता था। और रात होने तक वहीं छिपी रहने का इरादा कर लिया और मन में कहने लगी कि “रात होने पर मैं कोतवाल के घर चली जाऊंगी, उसकी मिहर्बान बीबी और दयादेई मुझको ज़रूर अपनी पनाह में ले लेंगी, अगर ले सकेंगी तो। सिवा उनके यहां के मैं और कहां जा सकती हूं?"

दिन बहुत बड़ा मालूम पड़ा और मुशकिल से कटा, अख़ीर को रात आई; मगर राजा की लड़की का आधी रात से पेश्तर वहां से जाने का हियाव नहीं पड़ा, उसने ख़याल किया कि रात ज़ियादा गुज़र जाने पर कोतवाल के घर के रास्ते में किसी से भेट होने का कम डर होगा। इस लिये आधी रात के बाद वह दरख़ से उतरी और बाग़ का दरवाज़ा खोल कर जिस रास्ते आई थी उसी रास्ते खंडहर के पास