इस कहानी का बहुत सा प्रारंभिक भाग बनारस की प्रसिद्ध मासिक पत्रिका 'काशीपत्रिका' में सन् १८८७ और १८८८ में ऐसी भाषा में प्रकाशित किया गया था जो नागरी और फ़ारसी दोनों अक्षरों में लिखी जा सके और सुगमता से सब को समझ में आ सके। वह पत्रिका अपने कलेवर में ऐसी ही भाषा का व्यवहार करती थी और दोनों वर्णो को काम में लाती थी। यदि वह कुछ समय बाद बन्द न हो गई होती तो कहानी का शेष भाग भी उसमें छप जाता।
२. मुझे यह कहानी इतनी प्रिय थी और पत्रिका के पढ़नेवालों को भी इतनी पसन्द आई थी कि मैंने पक्का संकल्प कर लिया था कि कभी न कभी इसे समाप्त कर हिन्दी रसिको के सामने पुस्तक रूप में अवश्य उपस्थित करूँगा। इसी से आज इसे सब की सेवा में समर्पित करने का साहसी होता हूं।
३. जिस प्रकार की भाषा में इसका प्रारंभिक भाग उक्त पत्रिका में प्रकाशित हुआ था उसी भांति की भाषा में शेष भाग भी लिखा गया है। इसमें फ़ारसी अरबी के अनेक शब्द आये हैं, परन्तु मैं आशा करता हूं कि उनके कारण हिन्दी के प्रेमी पाठक मुझ पर दुब्ध न होंगे, क्योंकि करीब २ वह सारे शब्द लाखों हिन्दी बोलने वालों की रोज़ की बोल चाल में आते हैं, इस कारण वह हिन्दी के कुनबे में संमिलित है और उनका हिन्दी पुस्तकों में विशेष कर कहानी की पुस्तकों में—व्यवहार करना मैं कोई अपराध की बात नहीं समझता।