जमुना को राजो के इस व्यवहार पर क्रोध आ गया। वह तो तितली की मित्र थी। फिर दबने वाली भी नहीं। उसने कहा—बेचारी तो पैर छू रही है और तुम अपना मुंह घुमा लेती हो, यह क्या है। तुम तो तितली की ननद हो न!
मैं कौन हूं? यह सिर चढ़ी तो स्वयं ही दूल्हा खोजकर आई है। भला इस दिखावट की आवभगत से क्या काम?
राजकुमारी का स्वर बड़ा तीव्र और रूखा था।
अब तो आ गई हूं जीजी—तितली ने हंसकर कहा।
कुछ युवतियों ने उसकी बात पर हंस दिया। परंतु एक दल ऐसा भी था, जो तितली से उग्र प्रतिवाद की आशा रखता था। गाना-बजाना बंद हो गया। तितली और राजकुमारी का द्वंद्व देखने का लोभ सबको उस ओर आकर्षित किए था।
एक ने कहा—सच तो कहती है, अब तो वह तुम्हारे घर आ गई है। तुमको अब वह बातें भुला देनी चाहिए।
मैं कर क्या रही हूं। मैं तो कुछ बोलती भी नहीं। तुम लोग झूठ ही मेरा सिर खा रही हो। क्या मैं तो चली जाऊं?—कहती हुई राजकुमारी उठ खड़ी हुई। जमुना ने उसका हाथ पकड़कर बिठाया, और तितली भौंचक-सी अपने अपराधों को खोजने लगी। उसने फिर साहस एकत्र किया और पूछा—जीजी, मेरा अपराध क्षमा न करोगी?
मै कौन होती हूं क्षमा करनेवाली? तुमको हाथ जोड़ती हूं, तुम्हारे पैरों पड़ती हूं, तुम राजरानी हो, हम लोगों पर दया रखो।
राजकुमारी और कुछ कहना ही चाहती थी कि किसी प्रौढ़ा ने हंसकर कहा—बेचारी के भाई को जादू-विद्या से इस कल की छोकरी ने अपने बस में कर लिया है। उसे दुख न हो?
राजकुमारी ने देखा कि वह बनाई जा रही है, फिर भी तितली की ही विजय रही। वह जल उठी। चुप होकर धीरे-से खिसक जाने का अवसर देखने लगी—पंडित दीनानाथ कुछ क्रोध से भरे हुए घर में आए और अपनी स्त्री से कहने लगे—मैं मना करता था कि इन शहरवालों के यहां एक ब्याह करके देख चुकी हो, अब यह ब्याह किसी देहात में ही करूंगा। पर तुम मानो तब तो। मांग-पर-मांग आ रही है। अनार-शरबत चाहिए। ले आओ, है घर में? इस जाड़े में भी यह ढकोसला! मालूम होता है, जेठ-वैसाख की गरमी से तप रहे हैं!
जमुना की मां धीरे-से अपनी कोठरी में गई और बोतल लिये हुए बाहर आई। उसने कहा—फिर समधी हैं, अनार-शरबत ही तो मांगते हैं। कुछ तुमसे शराब तो मांगते नहीं। घबराने की क्या बात है? सुखदेव चौबे से कह दो, जाकर दे आवें और समझा दें कि हम लोग देहाती हैं; पंडित जी को सागसत्तू ही दे सकते हैं, ऐसी वस्तु न मांगें जो यहां न मिल सकती हो।
जमुना की मां की एक बहन बड़ी हंसोड़ थी। उसने देखा कि अच्छा अवसरहै। वह चिल्ला उठी—छिपकली।
पंडित जी—कहां—कहते हुए उछल पड़े। सब स्त्रियां हंस पड़ीं। जमुना की मां ने कहा—छिपकली के नाम पर उछलते हो, यह सुनकर समधी तो तुम्हारे ऊपर सैकड़ों छिपकलियां उछाल देंगे।
पंडित जी ने कहा—तुम नहीं जानती हो, इसके गिरने से शुभ और अशुभ देखा जाता