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वह अपनी बड़ी-सी नील कोठी को व्यर्थ की विडम्बना समझकर, उसमें नया प्राण ले आने की मन-ही-मन स्त्री-हृदय के अनुकूल मधुर कल्पना करने लगी।

आज उसे अपनी भूल पग-पग पर मालूम हो रही थी। उसने उत्साह से कहा—अब विलंब नहीं।

दूर से धूल उड़ाती हुई मोटर आ रही थी। ड्राइवर के पास एक पांडेजी बंदूक लिये बैठे थे। पीछे श्यामदुलारी और माधुरी थीं।

टीले के नीचे मोटर रुकी। चमड़े का छोटा-सा बेग हाथ में लिये फुर्ती से शैला उतरी। वह जाकर माधुरी से सटकर बैठ गई।

माधुरी ने पूछा—और कुछ सामान नहीं है क्या?

नहीं तो।

तो फिर चलना चाहिए।

शैला ने कुछ सोचकर कहा—आपने तहसीलदार को साथ में नहीं लिया। बिना उसके वह काम, जो आप करना चाहती हैं; हो सकेगा?

क्षण-भर के लिए सन्नाटा रहा। माधुरी कुछ कहना चाहती थी। श्यामदुलारी ने ही कहा—हां, यह बात तो मैं भी भूल गई। उसको रहना चाहिए।

तो आप एक चिट्ठी लिख दें। मैं यहीं नील-कोठी के चपरासी के पास छोड़ आती हूं। वह जाकर दे देगा। कल तहसीलदार बनारस पहुंचेगा।

श्यामदुलारी ने माधुरी को नोट-बुक से पन्ना फाड़कर उस पर कुछ लिखकर दे दिया। शैला उसे लेकर ऊपर चली गई।

श्यामदुलारी ने माधुरी को देखकर कहा—हम लोग जितनी बुरी शैला को समझती थीं उतनी तो नहीं है, बड़ी अच्छी लड़की है।

माधुरी चुप थी! वह अब भी शैला को अच्छा स्वीकार करने में हिचकती थी।

शैला ऊपर से आ गई। उसके बैठ जाने पर हार्न देती हुई मोटर चल पड़ी।


3.

धामपुर में सन्नाटा हो गया। जमींदार की छावनी सूनी थी। बनजरिया में बाबाजी नहीं। नील-कोठी पर शैला की छाया नहीं। उधर शेरकोट के खंडहर में राजकुमारी अपने दुर्बल अभिमान में एंटी जा रही थी। उसका हृदय काल्पनिक सुखों का स्वप्न देखकर चंचल हो गया था। सुखदेव चौबे ने अकालजलद की तरह उसके संयम के दिन को मलिन कर दिया था। वह अब ढलते हुए यौवन को रोके रखने की चेष्टा में व्यस्त रहती है।

उसकी झोंपड़ी में प्रशाधन की सामग्री भी दिखाई पड़ने लगी। कहीं छोटा-सा दर्पण, तो कहीं तेल की शीशी। वह धीरे-धीरे चिकने पथ पर फिसल रही थी। लोग क्या कहेंगे, इस पर उसका ध्यान बहुत कम जाता। कभी-कभी अपनी मर्यादा के खोये हुए गौरव की क्षीण प्रतिध्वनि उसे सुनाई पड़ती; पर वह प्रत्यक्ष सुख की आशा को—जिसे जीवन में कभी प्राप्त