यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

आई, आई, लो, मेरा हाथ जलने से बचा।

मधुबन ने कहा—तो ले आओ न!

वह भी हंस रहा था।

पहले केले का पत्ता ले आओ। फिर जल्दी करना।

मधुबन केले का पत्ता लेने के लिए बनजरिया की झुरमुट में चला। शैला हंस रही थी। उसके सामने हरे-हरे दोनों में देहाती दही में भीगे हुए बड़े और आलू-मटर की तरकारी रख दी गई। पत्ते लेकर मधुबन के आते ही चावल, रोटी, दाल, हरे चने और लौकी भी सामने आ गई।

शैला खाती भी थी, हंसती भी थी। उसके मन में संतोष-ही-संतोष था। उसके आस-पास एक प्रसन्न वातावरण फैल रहा था, जैसे विरोध का कहीं नाम नहीं। इंद्रदेव! उस रूठे हुए मन को मना लाने के लिए तो वह जा रही थी।

भोजन कर लेने पर शैला ने हाथ पोंछते हुए मधुबन से कहा—नील कोठी की रखवाली तुम्हारे ऊपर। मैं दो-चार दिन भी वहां ठहर सकती हूं! सावधान रहना। किसी से लड़ाई-झगड़ा मत कर बैठना।

वाह! मैं सबसे लड़ाई ही तो करता फिरता हूं!

दूर न जाकर घर में तितली ही से, क्यों बहन!—शैला ने हंसकर कहा।

तितली लज्जा से मुस्कुराती हुई बोली—मैं क्या कलकत्ते की पहलवान हूं बहन!

मधुबन उत्तर न दे सकने से खीझ रहा था। पर वह खीझ बड़ी सुहावनी थी। सहसा उसे एक बात का स्मरण हुआ। उसने कहा-हां, एक बात तो कहना मैं भूल ही गया था। मलिया को लेकर वह तहसीलदार बहुत धमका गया है। मेरे सामने फिर आवेगा तो मैं उसके दो-चार बचे हुए दांत भी झाड़ दूंगा। वह बेचारी क्या इस गांव में रहने भी न पावेगी। और तो किसी से बोलने के लिए मैं शपथ खा सकता हूं।

मधुबन! सहनशील होना अच्छी बात है। परंतु अन्याय का विरोध करना उससे भी उत्तम है। तुम कोई उपद्रव न करोगे, इसका तो मुझे विश्वास है। अच्छा तो चलो मेरे साथ, और बहन तितली! तो मैं जाती हैं।

तितली ने नमस्कार किया। दोनों चले। अभी बनजरिया से कुछ ही दूर पहुंचे होंगे कि मलिया उधर से आती हुई दिखाई पड़ी। उसकी दयनीय और भयभीत मुखाकृति देखकर शैला को रुक जाना पड़ा। शैला ने उसे पास बुलाकर कहा—मलिया, तू तितली के पास निर्भय होकर रह, किसी बात की चिंता मत कर।

मलिया की आंखों में कृतज्ञता के औसू पर आए। नील कोठी पर पहुंचकर दो-चार आवश्यक वस्तुएं अपने बेग में रखकर शैला तैयार हो गई। मधुबन को आवश्यक काम समझाकर वह झील की ओर पत्थर पर बैठी हुई, सड़क पर मोटर आने की प्रतीक्षा करने लगी। मधुबन को भूख लगी थी। उसने जाने के लिए पूछा। तितली भी अभी बैठी होगी—यह जानकर शैला को अपनी भूल मालूम हूई। उसने कहा—जाओ, तितली मुझे कोसती होगी।

मधुबन चला गया। तितली की बातें सोचते-सोचते उसकी छोटी-सी सुख से भरी गृहस्थी पर विचार करते-करते, शैला के एकांत मन में नई गुदगुदी होने लगी।