रह सकेगी। मैंने अपने नाम की जमींदारि माधुरी को देने का निश्चय कर लिया है। तुम क्या कहती हो? हम लोग तुम्हारी सम्मति चाहती हैं।
मां जी, आपने ठीक सोचा है। बीबी-रानी को और दूसरा क्या सहारा है। मैं समझती हूं कि इसमें इंद्रदेव से पूछने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि उसके लिए कोई कमी नहीं। वह स्वयं भी कमा सकते हैं और सम्पत्ति भी है ही!
माधुरी अवाक् होकर शैला का मुंह देखने लगी। आज स्त्रियां सब एक ओर थीं। पुरुषों की दुष्टता का प्रतिकार करने में सब सहमत थीं। श्यामदुलारी ने शैला का अनुकूल मत जानकर कहा—तो हम लोग आज ही बनारस जाएंगी। वहां पहले मैं दान-पत्र की रजिस्ट्री कराऊंगी। तुम भी चलोगी?
बिना कुछ सोचे हुए शैला ने कहा—चलूंगी।
तो फिर तैयार हो जाओ। नहीं, दो घंटे में उधर ही नील-कोठी पर आकर तुम्हें लेती चलूंगी।
बहुत अच्छा—कहकर शैला उठ खड़ी हुई। वह सीधे बनजरिया की ओर चल पड़ी। मधुबन से कह चुकी थी, तितली उसकी प्रतीक्षा में बैठी होगी।
शैला कुछ प्रसन्न थी। उसने अज्ञात भाव से इंद्रदेव को जो थोड़ा-सा दूर हटाकर श्यामदुलारि और माधुरी को अपने हाथों में पा लिया था, वह एक लाभ-सा उसे उत्साहित कर रहा था। परंतु बीच-बीच में वह अपने हृदय में तर्क भी करती थी—इंद्रदेव को मैं एक बार ही भूल सकूंगी? अभी-अभी तो मैंने सोचा था कि चलकर इंद्रदेव से क्षमा मांग लूंगी, मना लाऊंगी; फिर यह मेरा भाव कैसा?
उसे खेद हुआ। और फिर अपनी भूल सुधारते हुए उसने निश्चय किया कि बुरा काम करते भी अच्छा हो सकता है। मैं इसी प्रश्न को लेकर इंद्रदेव से अच्छी तरह बातें कर सकूंगी और सफाई भी दे लूंगी।
वह अपनी धुन में बनजरिया तक पहुंच भी गई; पर उसे मानो ज्ञान नहीं। जब तितली ने पुकारा—वाह बहन! मैं कब से बैठी हूं, इस तरह के आने के लिए कहकर भी कोई भूल जाता है—तो वह आपे में आ गई।
मुझे झटपट कुछ लिखा दो। अभी-अभी मुझे शहर जाना है।
वाह रे झटपट! बैठो भी, अभी हरे चने बनाती हूं, तब खाना होगा। ठंडा हो जाने से वह अच्छा नहीं लगता। हम लोगों का ऐसा-वैसा भोजन, रूखा-सूखा, गरम-गरम ही तो खा सकोगी। चावल और रोटियां भी तैयार हैं! अभी बन जाता है।
तितली उसे बैठाती हुई, रसोई-घर में चली गई। हरे चनों की छनछनाहट अभी बनजरिया में गूंज रही थी कि मधुबन एक कोमल लौकी लिये हए आया। वह उसे बैठकर छीलने-बनाने लगा।
शैला इस छोटी-सी गृहस्थी में दो प्राणियों को मिलाकर उसकी कमी पूरी करते देखकर चकित हो रही थी। अभी छावनी की दशा देखकर आई थी। वहां सब कुछ था, पर सहयोग नहीं। यहां कुछ न था; परंतु पूरा सहयोग उस अभाव से मधुर युद्ध करने के लिए प्रस्तुत। शैला ने छेड़ने के लिए कहा—तितली! मुझे भूख लगी है। तुम अपने पकवान रहने दो; जो बना हो, मुझे लाकर खिला दो।