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मां जी आ रही हैं।

आती तो रही, उन्हें उठकर आने की जल्दी क्या पड़ी थी?

श्यामदुलारी भीतर आ गईं। उस वृद्धा स्त्री का मुख गंभीर और दृढ़ता से पूर्ण था। शैला का नमस्कार ग्रहण करते हुए एक कुर्सी पर बैठकर उन्होंने कहा—मिस शैला! आप अच्छी हैं? बहुत दिनों पर हम लोगों की सुध हुई।

मां जी! क्या करूं, आप ही का काम करती हूं। जिस दिन से यह सब काम सिर पर आ गया, एक घड़ी की छुट्टी नहीं। आज भी यदि एक घटना न हो जाती तो यहां आती या नहीं, इसमें संदेह है। आपके गांव भर में रात को पाला पड़ा। किसानों का सर्वनाश हो गया है। कई दवाएं भी नहीं है। तहसीलदार के पास लिख भेजा था। वे आईं कि नहीं और...

शैला और भी जाने क्या—क्या कह जाती; क्योंकि उसका मन चंचल हो गया था। इस गहस्थी की विश्रृंखलता के लिए वह अपने को अपराधी समझ रही थी। उसकी बातें उखड़ी-उखड़ी हो रही थीं। किंतु श्यामदुलारी ने बीच ही में रोककर कहा—पाला-पत्थर पड़ने में जमींदार क्या कर सकता है। जिस काम में भगवान का हाथ है, उसमें मनुष्य क्या कर सकता है। मिस शैला, मेरी सारी आशाओं पर भी तो पाला पड़ गया। दोनों लड़के बेकहे हो रहे हैं। हम लोग स्त्री हैं। अबला हैं। आज वह जीते होते तो दो-दो थप्पड़ लगाकर सीधा कर देते। पर हम लोगों के पास कोई अधिकार नहीं। संसार तो रुपये-पैसे के अधिकार तो मानता है। स्त्रियों के स्नेह का अधिकार, रोने-दुलारने का अधिकार, तो मान लेने की वस्तु है न?

अपनी विवशता और क्रोध से श्यामदुलारी की आंखों से औसू निकल आए। शैला सन्न हो गयी। उसे भी रह-रह कर इंद्रदेव पर क्रोध आता था। पुरुषों के प्रति स्त्रियों का हृदय प्राय: विषम और प्रतिकूल रहता है। जब लोग कहते हैं कि वे एक आंख से रोती हैं तो दूसरी से हंसती हैं, तब कोई भूल नहीं करते। हां, यह बात दूसरी है कि पुरुषों के इस विचार में व्यंग्यपूर्ण दृष्टिकोण का अंत है।

स्त्रियों को उनकी आर्थिक पराधीनता के कारण जब हम स्नेह करने के लिए बाध्य करते हैं, तब उनके मन में विद्रोह की सृष्टि भी स्वाभाविक है! आज प्रत्येक कुटुंब उनके इस स्नेह और विद्रोह के द्वंद से जर्जर है और असंगठित है। हमारा सम्मिलित कुटुंब उनकी इस आर्थिक पराधीनता की अनिवार्य असफलता है। उन्हें चिरकाल से वंचित एक कुटुंब से आर्थिक संगठन को ध्वस्त करने के लिए दिन-रात चुनौती मिलती रहती है। जिस कुल से वे आती हैं, उस पर से ममता हटती नहीं, यहां भी अधिकार की कोई संभावना न देखकर, वे सदा घूमने वाली गृहहीन अपराधी जाति कि तरह प्रत्येक कौटुम्बिक शासन को व्यवस्थित करने में लग जाती हैं। यह किसका अपराध है? प्राचीन-काल में स्त्रीधन की कल्पना हुई थी। किंतु आज उसकी जैसी दुर्दशा है, जितने कांड उसके लिए खड़े होते हैं, वे किसी से छिपे नहीं।

श्यामदुलारी का मन आज संपूर्ण विद्रोही हो गया था। लड़के और दामाद की उच्छूखंलता ने उन्हें अपने अधिकार को सजीव करने के लिए उत्तेजना दी। उन्होंने कहा—मिस शैला! मैंने निश्चय कर लिया है कि अब किसी को मनाने न जाऊंगी। हां, मेरी बेटी का दुःख से भरा भविष्य है और उसके लिए मुझे कोई उपाय करना ही होगा। वह इस तरह न