यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



श्यामदुलारी की खीझ बढ़ गई। उनके मन में यह धारणा हो रही थी कि इंद्र चाहते, और भी दो-एक पत्र लिखते, तो श्यामलाल अवश्य आते। वह इंद्रदेव से उदासीन रहने लगी। घरेलू कामों में अनवरी मध्यस्थता करने लगी। कुटुंब में पारस्परिक उदासीनता का परिणाम यही होता है। श्यामदुलारि का माधुरी के प्रति अकारण पक्षपात और इंद्रदेव पर संदेह, उनके कर्तव्य-ज्ञान को चबा रहा था।

कभी-कभी मनुष्य की यह मूर्खतापूर्ण इच्छा होती है कि जिनको हम स्नेह की दृष्टि से देखते हैं, उन्हें अन्य लोग भी उसी तरह प्यार करें। अपनी असंभव कल्पना को आहत होते देखकर वह झल्लाने लगता है।

श्यालदुलारी की इस दीनता को इंद्रदेव समझ रहे थे; पर यह कहें किस तरह। कहीं ऐसा न हो कि मन में छिपी हुई बात कह देने से मां और भी क्रोध कर बैठे; क्योंकि उसको स्पष्ट करने के लिए इंद्रदेव को अपने प्रेमाधिकार से औरों की तुलना करनी पड़ती, यह और भी उन्हीं के लिए लज्जा की बात होगी। उनका साधारण स्नेह जितना एक आत्मीय पर होना चाहिए, उससे अधिक भाग तो इंद्रदेव अपना समझते थे। किंतु जब छिपाने की बात है, तो स्नेह की अधिकता का भागी कोई दूसरा ही है क्या?

श्यामदुलारी अपने मन की बात अनवरी से कहलाने की चेष्टा क्यों करती है? मां को अधिकार है कि वह बच्चे का, उसके दोषों पर, तिरस्कार करे। गुरुजनों का यह कर्तव्य छोड्कर बनावटी व्यवहार इंद्रदेव को खलने लगा, जिसके कारण उन्हें अपनों को दूर हटाकर दूसरों को अपनाना पड़ा है। अनवरी आज इतनी अंतरंग बन गई है!

बड़ी कोठी में जैसे सब कुछ संदिग्ध हो उठा। अपना अवलम्ब खोजने के लिए जब इंद्रदेव ने हाथ बढ़ाया, तो वहां शैला भी नहीं! सारा क्षोभ शैला को ही दोषी बनाकर इंद्रदेव को उत्तेजित करने लगा। इस समय शैला उनके समीप होती!

अनवरी से लड़ने के लिए छाती खोलकर भी अपने को निस्सहाय पाकर इंद्रदेव विवश थे। विराट् वट-वृक्ष के समान इंद्रदेव के संपन्न परिवार पर अनवरी छोटे-से नीम के पौधे की तरह उसी का रस चूसकर हरी-भरी हो रही थी। उसकी जड़ें वट को बेधकर नीचे घुसती जा रही थीं। सब अपराध शैला का ही था। वह क्यों हट गई। कभी-कभी अपने कामों के लिए ही वह आती, तब उससे इंद्रदेव की भेंट होती; किंतु वह किसानों की बात करने में इतन तन्मय हो जाती कि इंद्रदेव को वह अपने प्रति उपेक्षा-सी मालूम होती।

कभी-कभी घर के कोने से अपने और तितली के भावी संबंध की सूचना भी उन्होंने सुनी थी। तब उन्होंने हंसी में उड़ा दिया था। कहां वह और कहां तितली—एक ग्रामीण बालिका! किंतु उस दिन ब्याह में जो तितली की निश्चल सौंदर्यमयी गंभीरता देखकर उन्हें एक अनुभूति हुई थी, उसे वह स्पष्ट न कर सके थे। हां, तो शैला ने उस ब्याह में भी योग दिया। क्या यह भी कोई सकारण घटना?

इंद्रदेव का मानसिक विप्लव बढ़ रहा था। उनके मन में निश्चल क्रोध धीरे-धीरे संचित होकर उदासीनता का रूप धारण करने लगा।

सांयकाल था। खेतों की हरियाली पर कहीं-कहीं डूबती हुई किरणों की छाया अभी पड़ रही थी। प्रकाश डूब रहा था। प्रशांत गंगा का कछार शून्य हृदय खोले पड़ा था। करारे पर सरसों के खेत में बसंती चादर बिछी थी। नीचे शीतल बालू में कराकुल चिड़ियों का एक