तो भी रामनाथ की आज्ञाओं का—आदेशों का अक्षरश:—पालन हो रहा था! तहसीलदार और इंद्रदेव वापस चले आए थे। तहसीलदार ने कहा— बाबाजी! आप यह काम अच्छा नहीं कर रहे हैं। तितली के घरवालों की संमति के बिना उसका ब्याह अपराध तो है ही, उसका कोई अर्थ भी नहीं।
इंद्रदेव को चुप देखकर रामनाथ ने कहा—क्या आपकी भी यही संमति है?
हां-नहीं-उन लोगों से तो आपको पूछ लेना...
किन लोगों से? तितली की बुआ! कहां थी वह—जब तितली मर रही थी पानी के बिना? और फिर आपको भी विश्वास है कि यह तितली की बुआ ही है? मैं भी इस गांव की सब बातें जानता हूं। रह गई मधुबन की बात, सो अब वह लड़का नहीं है; उसे कोई भुलावा नहीं दे सकता।
रामनाथ ने फिर अपनी शेष विधि पूरी की। उधर दोनों स्त्रियां उछल-कूद मचा रही थीं।
अनवरी ने धीरे-से वाट्सन से कहा—क्या आपको इसमें कुछ न बोलना चाहिए?
कुछ सोचकर वाट्सन ने कहा—नहीं, मैं इन बातों को अच्छी तरह जानता भी नहीं, और देखता हूं तो दोनों ही अपना भला-बुरा समझने लायक हैं। फिर मैं क्यों...?
आह! यह मेरा मतलब नहीं था। मैं तो प्राणी का प्राणी से जीवन-भर के संबंध में बंध जाना दासता समझती हूं; उसमें आगे चलकर दोनों के मन में मालिक बनने की विद्रोह-भावना छिपी रहती है। विवाहित जीवन में, अधिकार जमाने का प्रयत्न करते हुए स्त्री-पुरुष दोनों ही देखे जाते हैं। यह तो एक झगड़ा मोल लेना है।
ओह! तब आप एक सिद्धांत की बात कर रही थीं—वाट्सन ने मुस्कुराकर कहा।
कुछ भी हो, बाबाजी! आपको इसमें समझ-बूझकर हाथ डालना चाहिए।—न जाने किस भावना से प्रेरित होकर वेदी के पास ही खड़े हुए इंद्रदेव ने कहा। उनके मुख पर झुंझलाहट और संतोष की रेखाएं स्पष्ट हो उठीं।
रामनाथ ने उनको और तितली को देखते हुए कहा—कुंवर साहब! मधुबन ही तितली के उपयुक्त वर है। मैं अपना दायित्व अच्छी तरह समझकर ही इसमें पड़ा हूं। कम-से-कम जो लोग संबंध में यहां बातचीत कर रहे हैं, उनसे मेरा अधिक न्यायपूर्ण अधिकार है।
इंद्रदेव तिलमिला उठे। भीतर की बात वह नहीं समझ रहे थे; किंतु मन के ऊपर सतह पर तो यह आया कि यह बाबा प्रकारांतर से मेरा अपमान कर रहा है।
उधर से चौबे ने कहा—अधिकार! यह कैसा हठीला मनुष्य है, जो इतने बड़े अफसर और जमींदार के सामने भी अपने को अधिकारी समझता है! सरकार! यह धर्म का ढोंग है। इसके भीतर बड़ी कतरनी है! इसने सारे गांव में ऐसी बुरी हवा फैला दी है कि किसी दिन इसके लिए बहुत पछताना होगा, यदि समय रहते इसका उपाय न किया गया।
इंद्रदेव की कनपटी लाल हो उठी। वह क्रोध को दबाना चाहते थे शैला के कारण। परंतु उन्हें असहय हो रहा था।
शैला ने खड़ी होकर कहा—एक पल-भर रुक जाइए। क्यों मधुबन! तुम पूरी तरह से विचार करके यह ब्याह कर रहे हो न? कोई तुमको बहका तो नहीं रहा है? इसमें तुम प्रसन्न हो?