यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

शैला—सामने घुसती हुई चली जाने वाली सरल और साहसभरी युवती। फिर वह तितली-सी ग्रामीण बालिका क्यों बनने की चेष्टा कर रही है? क्या मेरी दृष्टि में उसका यह वास्तविक आकर्षण क्षीण नहीं हो जाएगा? वह तितली बनकर मेरे हृदय में शैला नहीं बनी रहेगी। तब तो उस दिन तितली को ही जैसा मैंने देखा; वह कम सुंदर न थी।

अरे-अरे, मैं क्या चुनाव कर रहा हूं। मुझे कौन-सी स्त्री चाहिए!—हां, प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु-से सरल हृदयों की वस्तु है। अधिकतर मनुष्य चुनाव ही करता है, यदि परिस्थिति वैसी हो। मैं स्वीकार करता हूं कि संसार की कुटिलता मुझे अपना साथी बना रही है। वह मित्र-भाव तो शैला का साथ न छोड़ेगा। किंतु मेरी निष्कपट भावना...जैसे मुझसे खो गई है। मुझे संदेह होने लगा है कि शैला को वैसा ही प्यार करता हूं, या नहीं!

मनुष्य का हृदय, शीतकाल की उस नदी के समान जब हो जाता है— जिसमें ऊपर का कुछ जल बरफ की कठोरता धारण कर लेता है, तब उसके गहन तल में प्रवेश करने का कोई उपाय नहीं। ऊपर-ऊपर भले ही वह पार की जा सकती है। आज प्रवंचनाओं की बरफ की मोटी चादर मेरे हृदय पर ओढ़ा दी गई है। मेरे भीतर का तरल जल बेकार हो गया है, किसी की प्यास नहीं बुझा सकता। कितनी विवशता है!

शैला ने डायरी रख दी।

इंद्रदेव आ गए, तब भी वह आख मूंद कर बैठी रही। इंद्रदेव ने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा—शैला?

अरे, कब आ गए? मैं कितनी देर से बैठी हूं!

मैं चला गया था मिस्टर वाट्सन से मिलने। कोऑपरेटिव बैंक के संबंध में और चकबंदी के लिए वह आए हैं। कल ही तो तुम्हारा औषधालय खुलेगा। इस उत्सव में उनका आ जाना अच्छा हुआ। तुम्हारे अगले कामों में सहायता मिलेगी।

हां, पर मैं एक बात तुमसे पूछने आई हूं।

वह क्या?

कल मैं बाबा रामनाथ से हिंदू-धर्म की दीक्षा लूंगी।

अच्छा! यह खिलवाड़ तुम्हें कैसे सूझा? मैंने तो...

नहीं, तुम इस मेरे धर्म-परिवर्तन का कोई दूसरा अर्थ न निकालो। इसका कुछ भी बोझ तुम्हारे ऊपर नहीं है।

अवाक् होकर इंद्रदेव ने शैला की ओर देखा। वह शांत थी। इंद्रदेव ने साहस एकत्र करके कहा—तब जैसी तुम्हारी इच्छा!

तुम भी सवेरे ही बनजरिया में आना। आओगे न?

आऊंगा। किंतु मैं फिर पूछता हूं कि-यह क्यों?

प्रत्येक जाति में मनुष्य को बाल्यकाल ही में एक धर्म-संघ का सदस्य बना देने की मूर्खतापूर्ण प्रथा चली आ रही है। जब उसमें जिज्ञासा नहीं, प्रेरणा नहीं, तब उसके धर्म-ग्रहण करने का क्या तात्पर्य हो सकता है? मैं आज तक नाम के लिए ईसाई थी। किंतु धर्म का रूप समझ कर उसे मैं अब ग्रहण करूंगी। चित्रपट पहले शुभ्र होना चाहिए, नहीं तो उस पर चित्र बदरंग और भद्दा होगा। मैं हृदय का चित्रपट साफ कर रही हूं—अपने उपास्य का