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उसका ब्याह दूसरे से होने पर वह बचेगी नहीं।

राजकुमारी ने अब रूप बदला। बहुत तीखे स्वर से बोली-तो आप मधुबन का सर्वनाश करना चाहते हैं! कीजिए; मैं स्त्री हूं क्या कर सकूंगी। वह आंखों में औसू भरे उठ गई।

रामनाथ भी काठ की तरह चुपचाप बैठे नहीं रहे। वह अपनी पोटली टटोलने के लिए झोंपड़ी में चले गए।

जब रामनाथ झोंपड़ी में से कुछ हाथ में लिये बाहर निकले तो मधुबन दिखाई पड़ा। उसका मुंह क्रोध से तमतमा रहा था। कुछ कहना चाहता था; पर जैसे कहने की शक्ति छिन गई हो! रामनाथ ने पूछा—क्या घर नहीं गए?

गया था।

फिर तुरंत ही चले क्यों आए?

वहां क्या करता? देखिए, इधर मैं घर की कोई बात आपसे कहना चाहता था, परंतु डर से कह नहीं सका। राजो..वह कहते-कहते रुक गया।

कहो, कहो। चुप क्यों हो गए?

मैं जब घर पहुंचा, तो मुझे मालूम हुआ कि वह चौबे आज मेरे घर आया था। उससे बातें करके राजो कहीं चली गई है। बाबाजी...

ओह, तो तुम नहीं जानते। वह तो यहीं आई थी। अभी घर भी तो न पहुंची होगी। यहां आई थी!

हां, कहने आई थी कि तितली का ब्याह मधुबन से न होकर जमींदार इंद्रदेव से होना अच्छा होगा।

यहां तक। मैंने तो समझा था कि...

पर तुम क्यों इस पर इतना क्रोध और आश्चर्य प्रकट करो! ब्याह तो होगा ही!

मैं वह बात नहीं कह रहा था। मुझे तो तहसीलदार ही की नस ठीक करने की इच्छा थी। अब देखता हूं कि इस चौबे को भी किसी दिन पाठ पढ़ाना होगा। वह लफंगा किस साहस पर मेरे घर पर आया था! आप कहते हैं क्या! मैं तो उसका खून भी पी जाऊंगा।

रामनाथ ने उसके बढ़ते हुए क्रोध को शांत करने की इच्छा से कहा—सुनो मधुबन! राजो फिर भी तो स्त्री है। उसे तुम्हारी भलाई का लोभ किसी ने दिया होगा। वह बेचारी उसी विचार से....

नहीं बाबाजी। इसमें कुछ और भी रहस्य है। वह चाहे मैं अभी नहीं समझ सका हूं..।—कहते-कहते मधुबन सिर नीचा करके गंभीर चिंता में निमग्न हो गया।

अंत में रामनाथ ने दृढ़ स्वर से कहा—पर तुमको तो आज ही शहर जाना होगा। यह लो रुपये सब वस्तुएं इसी सूची के अनुसार आ जानी चाहिए।

मधुबन ने हताश होकर रामनाथ की ओर देखा; फिर वह वृद्ध अविचल था।

मधुबन को शहर जाना पड़ा।

दूर से तितली सब सुनकर भी जैसे कुछ नहीं सुनना चाहती थी। उसे अपने ऊपर क्रोध आ रहा था। वह क्यों ऐसी विडंबना में पड़ गई! उसको लेकर इतनी हलचल! वह लाज में गड़ी जा रही थी।