यह है? उन्होंने मधुबन के नमस्कार का उत्तर देते हुए तितली से पूछा-मिस शैला अभी—अभी यहां आई थीं?
हां, अभी ही नील-कोठी की ओर गई हैं!—तितली ने घूमकर मधुर स्वर से कहा। वह खड़ी हो गई।
इंद्रदेव ने समीप आते हए रामनाथ को देखकर नमस्कार किया। रामनाथ इसके पहले से ही आशीर्वाद देने के लिए हाथ उठा चुके थे? इंद्रदेव ने हंसकर पूछा—आपकी पाठशाला तो चल रही है?
श्रीमानों की कृपा पर उसका जीवन है। मैं दरिद्र ब्राह्मण भला क्या कर सकता हूं। छोटे-छोटे लड़के संध्या में पढ़ने आते हैं।
अच्छा, मैं इस पर फिर कभी विचार करूंगा। अभी तो नील-कोठी जा रहा हूं। प्रणाम!
इंद्रदेव अपने घोड़े पर सवार होकर चले गए।
रामनाथ, मधुबन और तितली वहीं खड़े रहे।
रामनाथ ने पूछा—मधुबन, तुम आजकल कैसे हो रहे हो?
मधुबन ने सिर झुका लिया।
रामनाथ ने कहा—मधुबन! कुछ ही दिनों में एक नई घटना होने वाली है। वह अच्छी होगी या बुरी, नहीं कह सकता। किंतु उसके लिए हम सबको प्रस्तुत रहना चाहिए।
क्या?—मधुबन ने सशंक होकर पूछा।
शैला को मैं हिंदू-धर्म की दीक्षा दूंगा।—स्थिर भाव से रामनाथ ने कहा। मधुबन ने उद्विग्न होकर कहा—तो इसमें क्या कुछ अनिष्ट की संभावना है?
विधाता का जैसा विधान होगा, वही होगा। किंतु ब्राह्मण का जो कर्तव्य है, वह करूंगा।
तो मेरे लिए क्या आज्ञा है? मैं तो सब तरह प्रस्तुत हूं।
हूं और उसी दिन तुम्हारा ब्याह भी होगा!
उसी दिन!—वह लज्जित होकर कह उठा। तितली चली गई।
क्यों, इसमें तुम्हें आश्चर्य किस बात का है? राजकुमारी की स्वीकृति मुझे मिल ही जाएगी, इसकी मुझे पक्की आशा है।
जैसा आप कहिए।—उसने विनम्र होकर उत्तर दिया। किंतु मन-ही-मन बहुत-सी बातें सोचने लगा—तितली को लेकर घर-बार करना होगा। और भी क्या-क्या...
रामनाथ ने बाधा देकर कहा—आज पाठ न होगा। तुम कई दिन से घर नहीं गए हो, जाओ!
वह भी छुट्टी चाहता ही था। मन में नई-नई आशाएं, उमंग और लड़कपन के-से प्रसन्न विचार खेलने लगे। वह शेरकोट की ओर चल पड़ा।
रामनाथ स्थिर दृष्टि से आकाश की ओर देखने लगा। उसके मुंह पर स्फूर्ति थी; पर साथ में चिंता भी थी अपने शुभ संकल्पों की—और उसमें बाधा पड़ने की संभावना थी। फिर वह क्षण-भर के लिए अपनी विजय निश्चित समझते हुए मुस्कुरा उठे। बनजरिया की हरियाली में वह टहलने लगे।
उनके मन में इस समय हलचल हो रही थी कि ब्याह किस रीति से किया जाए।