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चलाता। मधुबन और तितली दोनों एक-दूसरे को अच्छी तरह पहचान गए हैं। और तितली पर तुमको दया ही नहीं करनी होगी, तुम उसे प्यार भी करोगी। उसे तुमने इधर देखा है? नहीं, अब तो वह बहुत दिन से इधर आती ही नहीं। आज मेम साहब के साथ वह भी नहाने गई है। शैला का नाम तो तुमने सुना होगा? वही जो यहां के जमींदार इन्द्रदेव के साथ विलायत से आई है। बड़ी अच्छी सुशील लड़की है। वह भी मेरे यहां संस्कृत पड़ती है। तुम चलकर उन दोनों से बात भी कर लो और देख भी लो। ___ अच्छा, मैं अभी आती हूं। __ मैं भी चलता हूं बेटी! मधुबन उनके संग नहीं है। मल्लाह को तो सहेज दिया हे। तो चलूं! रामनाथ नहाने के घाट की ओर चले। राजकुमारी भी रामदीन की नानी के साथ गंगा की ओर चली। ___ अभी वह शेरकोट से बाहर निकलकर पथ पर आई थी कि सामने से चौबेजी दिखाई पड़े। राजकुमारी ने एक बार बूंघट खींचकर मुडते हुए निकल जाना चाहा। किंतु चौबे ने सामने आकर टोक ही दिया-भाभी हैं क्या? अरे मैं तो पहचान ही न सका! दख में सब लोग पहचान लें, ऐसा तो नहीं होता। राजकुमारी ने अनखाते हए कहा। अरे नहीं-नहीं! मैं भला भूल जाऊंगा? नौकरी ठहरी। बराबर सोचता हूं कि एक दिन शेरकोट चलूं पर छुट्टी मिले तब तो। आज मैंने भी निश्चय कर लिया था कि भेंट करूंगा ही। चौबेजी के मुंह पर एक स्निग्धता छा गई थी; वह मुस्कराने की चेष्टा करने लगे। किंतु मैं नहाने जा रही हूं। अच्छी बात है, मैं थोड़ी देर में आऊंगा।—कहकर चौबेजी दूसरी ओर चले गए, और राजकुमारी को पथ चलना दूभर हो गया! कितने बरस पहले की बात है! जब वह ससुराल में थी, विधवा होने पर भी बहुत-सा दुख, मान-अपमान भरा समय वह बिता चुकी थी। वह ससुराल की गृहस्थी में बोझ-सी हो उठी थी। चचेरी सास के व्यंग्य से नित्य ही घड़ी-दो-घड़ी कोने में मुंह डालकर रोना पड़ता। सब कुछ सहकर भी वहीं खटना पड़ता। ससुराल के पुरोहितों में चौबेजी का घराना था। चौबे प्राय: आते-जाते-वैसे ही, जैसे घर के प्राणी; और गांव के सहज नाते से राजकुमारी के वह देवर होते-हंसने-बोलने की बाधा नहीं थी। राजकुमारी के पति के सामने से ही यह व्यवहार था। विधवा होने पर भी वह छूटा नहीं। उस निराशा और कष्ट के जीवन में भी कभी-कभी चौबे आकर हंसी की रेखा खींच देते। दोनों के हृदय में एह सहज स्निग्धता और सहानुभूति थी। दिन-दिन वहीं बढ़ने लगी। स्त्री का हृदय था; एक दुलार का प्रत्याशी उसमें कोई मलिनता न चौबे भी अज्ञात भाव से उसी का अनुकरण कर रहे थे। पर वह कुछ जैसे अंधकार में चल रहे थे। राजकुमारी फिर भी सावधान थी! एक दिन सहसा नियमित गालियां सुनने के समय जब चौबे का नाम भी उसमें मिलकर भीषण अट्टहास कर उठा, तब राजकुमारी अपने मन में न जाने क्यों वास्तविकता