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अरे पहले बैठ तो जाइए। -कुर्सी खिसकाते हुए शैला ने कहा, मैं तो स्वयं अभी चलने के लिए तैयार हो रही थी।

अच्छा

हां, शेरकोट के बारे में रानी साहिबा से मुझे कुछ कहना था। मेरे भ्रम से एक बड़ी बुरी बात हो रही है, उसे रोकने के लिए...

क्या?

मधुबन बेचारा अपनी झोंपड़ी से भी निकाल दिया जाएगा। उसके बाप-दादों की डीह है। मैंने बिना समझे-बूझे बैंक के लिए वही जगह पसंद की। उस भूल को सुधारने के लिए मैं अभी ही आने वाली थी।

__मधुबन! हां, वही न, जो उस दिन रात को आपके साथ था, जब आप नील-कोठी से आ रही थीं? उस पर तो आपको दया करनी ही चाहिए-कहकर अनवरी ने भेद-भरी दृष्टि से इन्द्रदेव की ओर देखा।

इन्द्रदेव कुर्सी छोड़ उठ खड़े हुए।

शैला ने निराश दृष्टि से उनकी ओर देखते हुए कहा-तो इस मेरी दया में आपकी सहायता की भी आवश्यकता हो सकती है। चलिए।



क्यों बेटी! तुमने सोच-विचार लिया? -कोठरी के बाहर बैठे हुए रामनाथ ने पूछा। भीतर से राजकुमारी ने कहा-बाबाजी, हम लोग इस समय ब्याह करने के लिए रुपए कहां से लावें? रुपयों से ब्याह नहीं होगा बेटी! ब्याह होगा मधुबन से तितली का। तुम इसे स्वीकार कर लो; और जो कुछ होगा मैं देख लूंगा। मैं अब बूढ़ा हुआ, तितली को तुम लोगों की स्नेहछाया में दिए बिना मैं कैसे सुख से मरूंगा? अच्छा, पर एक बात और भी आपने समझ ली है? क्या मधुबन, तितली के साथ गृहस्थी चलाने के लिए, दुःख-सुख भोगने के लिए तैयार है? वह अपनी सुध-बुध तो रखता ही नहीं। भला उसके गले एक बछिया बांधकर क्या आप ठीक करेंगे? ___ सुनो बेटी, दस बीघा तितली के, और तुम लोगों के जो खेत हैं-सब मिलाकर एक छोटी-सी गृहस्थी अच्छी तरह चल सकेगी। फिर तुमको तो यही सब देखना है, करना है, सब संभाल लोगी। मधुबन भी पढ़ा-लिखा परिश्रमी लड़का है। लग-लपटकर अपना घर चला ही लेगा। ___मधुबन से भी आप पूछ लीजिए। वह मेरी बात सुनता कब है। कई बार मैंने कहा कि अपना घर देख, वह हंस देता है, जैसे उसे इसकी चिंता ही नहीं। हम लोग न जाने कैसे अपना पेट भर लेते हैं। फिर पराई लड़की घर में ले आकर तो उसी तरह नहीं चल सकता? तुम भूलती हो बेटी! पराई लड़की समझता तो मैं उसके ब्याह की यहां चर्चा न