यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

________________

गया, अब आप लोग जाइए। तहसीलदार ने सिर झुकाकर विनयपूर्वक विदा ली। चौबेजी भी बाहर चले गए। __ श्यामदुलारी के मौन हो जाने से वहां का वातावरण कुंठित-सा हो गया। माधुरी जैसे कुछ कहने में संकुचित थी। कुछ देर तक यही अवस्था बनी रही। फिर सहसा माधरी ने कहा क्यों मां। क्या सोच रही हो? यह भला कौन-सी बात है इतनी सोचने-विचारने की! ये लोग तो ऐसी व्यर्थ की बातें निकालने में बड़े चतुर हैं ही। तुमको तो यह काम पहले ही कर डालना चाहिए। किंतु क्या कर डालना चाहिए, उसे साफ-साफ माधुरी ने भी अभी नहीं सोचा था। वह केवल मन बहलाने वाली कुछ बातें करना चाहती थी। किंतु श्यामदुलारी के सामने यह एक विचारणीय प्रश्न था। उन्होंने सिर उठाकर गहरी दृष्टि से देखते हुए पूछा—क्या? ___माधुरी क्षण-भर चुप रही, तो भी उसने साहस बटोरकर कहा भाई साहब का नाम उस पर भी चढ़वा दो, झगड़ा मिटे। श्यामदुलारी ने सिर झुका लिया। वह सोचने लगी। उनके सामने एक समस्या खड़ी हो गई थी। समस्याएं तो जीवन में बहुत-सी रहती हैं, किंतु वे दूसरों के स्वार्थों और रुचि तथा करुचि के द्वारा कभी-कभी जैसे सजीव होकर जीवन के साथ लड़ने के लिए कमर कसे हए दिखाई पड़ती हैं। ___ श्यामदुलारी के सामने उनका जीवन इन चतुर लोगों की कुशल कल्पना के द्वारा निस्सहाय वैधव्य के रूप में खड़ा हो गया। दूसरी ओर थी वास्तविकता से वंचित माधुरी के कृत्रिम भावी जीवन की दीर्घकालव्यापिनी दःख रेखा। एक क्षण में ही नारी-हदय ने अपनी जाति की स ने अपनी जाति की सहानुभूति से अपने को आपाद-मस्तक ढक लिया। माधुरी की ओर देखते हुए श्यामदुलारी की औखें छलछला उठीं। उन्हें मालूम हुआ कि माधुरी उस संपत्ति को इन्द्रदेव के नाम करने का घोर विरोध कर रही है। उसकी निस्सहाय अवस्था, उसके पति की हृदय-हीनता और कृष्णमोहन का भविष्य—सब उसकी ओर से श्यामदुलारी की वृद्धि को सहायता देने लगे। ____ माधुरी ने कहने को तो कह दिया! परंतु फिर उसने आंख नहीं उठाई। सिर झुकाकर नीचे की ओर देखने लगी। श्यामदुलारी ने कहा-माधुरी, अभी इसकी आवश्यकता नहीं है। तू सब बातों में टांग मत अड़ाया कर। मैं जैसा समझूगी, करूंगी। ____माधुरी इस मीठी झिड़की से मन-ही-मन प्रसन्न हुई। वह नहाने चली गई, सो भी रूठने का-सा अभिनय करते हुए। श्यामदुलारी मन-ही-मन हंसी।