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अलाव के प्रकाश में बुड्ढे के मुख पर धृणा की दो-तीन रेखाएं गहरी हो गईं। फिर वह संभल कर कहने लगा—पर उनकी बहन जेन माया-ममता की मूर्ति थी। कितने ही बार्टली के सताए हुए लोग उन्हीं के रुपए से छुटकारा पाते, जिसे वह छिपाकर देती थीं। और, मुझ पर तो उनकी बड़ी दया रहती थी। मैं उनकी नौकरी कर चुका हूं। मैं लड़कपन से ही उन्हीं की सेवा में रहता था। यह सब खेती-बाड़ी गृहस्थी उन्हीं की दी हुई है। उनके जाने के समय मैं कितना रोया था!—कहते-कहते बुड्ढे की आखों से पुराने आंसू बहने लगे। शैला ने बात सुनने के लिए फिर कहा—तो तुम उनके पास नौकरी कर चुके हो? अच्छा तो वही नील-कोठी अरे मेम साहब, वह नील-कोठी अब काहे को है, वह तो है भुतही कोठी! अब उधर कोई जाता भी नहीं, गिर रही है। जेन के कई बच्चे वहीं मर गए हैं। वह अपने भाई से बारबार कहती कि मैं देश जाऊंगी: पर बार्टली ने जाने न दिया। जब वह मरे, तभी जेन को यहां से जाने का अवसर मिला। मुझसे कहा था कि महंगू, जब बाबा होगा, तो तुमको बुलाऊंगी उसे खेलाने के लिए, आ जाना; मैं दूसरे पर भरोसा नहीं करूंगी। मुझे ऐसा ही मानती थीं। चली गईं, तब से उनका कोई पक्का समाचार नहीं मिला। पीछे एक साहब से, —जब वह यहां का बंदोबस्त करने आया था, सुना—कि जेन का पति स्मिथ साहब बड़ा पाजी है, उसने जेन का सब रुपया उड़ा डाला। वह बेचारी बड़ी दुःखी हैं। मैं यहां से क्या करता मेम साहब! शैला चुपचाप सुन रही थी। उसके मन में आंधी उठ रही थी; किंतु मुख पर धैर्य की शीतलता थी। उसने कहा—महंगू, मैं तुम्हारी मालकिन को जानती हूं। क्या अभी जीती हैं मेम साहब?—बुड्ढे ने बड़े उल्लास से पूछा। उसके हाथ का हुक्का छूटते-छूटते बचा। नहीं, वह तो मर गईं। उनकी एक लड़की है। अहा! कितनी बड़ी होगी वह! मैं एक बार देख तो पाता? अच्छा, जब समय आवेगा तो तुम देख लोगे। पहले यह तो बताओ कि मैं नील-कोठी देखना चाहती हूं; इस समय कोई वहां मेरे साथ चल सकता है? सब किसान एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। भूतही कोठी में इस रात को कौन जाएगा। महंगू ने कहा—मैं बूढ़ा हूं, रात को सूझता कम है। मधुबन ने कहा—मेम साहब, मैं चल सकता हूं। साहस पाकर लड़के रामजस ने कहा—मैं भी चलूंगा भइया। मधुबन ने कहा—तुम्हारी इच्छा! कंधे पर अपनी लाठी रखे, मधुबन आगे, उसके पीछे शैला तब रामजस; तीनों उस चांदनी में पगडंडी से चलने लगे। चुपचाप कुछ दूर निकल जाने पर शैला ने पूछा–मधुबन, खेती से तुम्हारा काम चल जाता है? तुम्हारे घर पर और कौन है? मेम साहब! काम तो किसी तरह चलता ही है। दो-तीन बीघे की खेती ही क्या? बहन है बेचारी; न जाने कैसे सब जुटा लेती है। आज-कल तो नहीं, हां जब मटर हो जाएगी, गांवों में कोल्हू चलने ही लगे हैं, तब फिर कोई चिंता नहीं। तुम शिकार नहीं करते?