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तैरते हुए रामदीन ने कहा—अरे क्यों बिगड़ रहे हो दादा! आज कितने दिनों बाद छुट्टी मिली है। ऊधम मचाने अब कहां आता हूं। तैरते हुए तीर की ओर लौटकर उसने मलिया के पास पहुंचने का ज्यों ही उपक्रम किया, वह गंगा से निकलने लगी। रामदीन ने कहा—अरे क्या मैं काट लूंगा? मलिया, ठहर न! वह रुक गई। रामदीन ने धीरे से पास आकर पूछा—क्यों रे, तेरी सगाई पक्की हो गई? उसने कहा—धत! रामदीन ने कहा—तो आज मैं तेरे चाचा से कहूं कि... मलिया ने बीच ही में बात काटकर कहा—देखो, मुझे गाली दोगे तो.. .हां, कहे देती 'hca " क्या कहे देती है? क्या मुझे डराती है? अब तो मुझे तेरी बीबी रानी का डर नहीं। मलिया, तू जानती है छोटी कोठी में मेम साहब जब से आई हैं, तब से मैं ही उनका खाना बनाता हूं चौबेजी का काम भी मैं ही करता हूं? अब तो... ___ मेम साहब के भरोसे कूद रहे हो न! देखो तो तुम्हारी मेम साहब की दुर्दशा चार दिन में होती है। बीबी रानी... क्या...बकती है! चल, अपना काम देख! वह तो कहती थीं कि रामदीन, तुझको मैं सरकार से कहकर खेत दिलवा दूंगी। वहीं... । चल, अपना मुंह देख, मुझसे चला है सगाई करने! तीन ही दिन में छोटी कोठी से भी तेरी मेम साहब भागती हैं। तब लेना खेत! अरे तो क्या... आगे रामदीन कुछ न बोल सका; क्योंकि एक गौर वर्ण की प्रौढ़ा स्त्री धोती लिये हुए उत्तर की ओर से धीरे-धीरे गंगा में उतर रही थी। उसे देखते ही दोनों की सिट्टी भूल गई। दोनों ही गंगा जल में से निकलकर उसे अभिवादन करके भलेमानसों की तरह अपनी-अपनी धोती पहनने लगे। उस स्त्री के अंग पर कोई आभषण न था. और न तो कोई सधवा का चिन्ह! था केवल उज्ज्वलता का पवित्र तेज, जो उसकी मोटी-सी धोती के बाहर भी प्रकट था। एक पत्थर पर अपनी धोती रखते हुए उसने घूमकर पूछा—क्यों रे रामदीन, तुझे कभी घंटे भर की भी छुट्टी नहीं मिलती? आज अठवारों हो गया, कोई सौदा ले आना है। तेरी नानी कहती थी, आज रामदीन आने वाला है। सो तू आज आने पर भी यहीं धमाचौकड़ी मचा रहा है? ____मालकिन! मैं नहाकर कोट में आ ही रहा था। यही मलिया बड़ी पाजी है, इसने धोती पर पानी के छींटे...सरकार... रामदीन अपनी बनावटी बात को आगे न बढ़ा सका। बीच ही में मलिया अपनी सफाई देती हुई बोल उठी—इसकी छाती फट जाए, झूठा कहीं का! मालकिन, यह मुझको दे रहा है। इसका घमंड बढ़ गया है। मेम साहब का खानसामा बन गया है, तो चला है मुझसे सगाई करने!