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संभाल सकेंगे? यदि नहीं, तो मैं क्यों बनाने की चेष्टा करूं। उसके मन में तेरह बरस के कृष्णमोहन का ध्यान आ गया। थियासोफिकल स्कूल में वह पढ़ता है। पिता बाबू श्यामलाल उसकी ओर से निश्चित थे। हां, उसके भविष्य की चिंता तो उसकी माता माधुरी को ही थी। तब भी वह जैसे अपने को धोखे में डालने के लिए कह बैठती-जैसा जिसके भाग्य में होगा, वही होकर रहेगा। अनवरी इस कुटुंब की मानसिक हलचल में दत्तचित्त होकर उसका अध्ययन कर रही थी। न जाने क्यों, तीनों चुप होकर मन-ही-मन सोच रही थीं। पलंग पर श्यामदुलारी मोटी-सी तकिया के सहारे बैठी थीं। चौकी पर चांदनी बिछी थी। माधुरी और अनवरी वहीं बैठी हुई एक-दूसरे का मुंह देख रही थीं। तीन-चार कुर्सियां पड़ी थीं। छोटी कोठी का यह बाहरी कमरा था। श्यामदुलारी यहीं पर सबसे बात करती, मिलती-जुलती थीं; क्योंकि उनका निज का प्रकोष्ठ तो देव-मंदिर के समान पवित्र, अस्पृश्य और दुर्गम्य था? बिना स्नान किए-कपड़ा बदले, वहां कौन जा सकता था! बाहर पैरों का शब्द सुनाई पड़ा। तीनों स्त्रियां सजग हो गईं, माधुरी अपनी साड़ी का किनारा संवारने लगी। अनवरी एक उंगली से कान के पास के बालों को ऊपर उठाने लगी और, श्यामदुलारी थोड़ा खांसने लगी। इन्द्रदेव शैला और चौबेजी के साथ, भीतर आए। माता को प्रणाम किया। श्यामदुलराि ने 'सुखी रहो' कहते हुए देखा कि वह गोरी मेम भी दोनों हाथों की पतली उंगलियों में बनारसी साड़ी का सुनहला अंचल दबाए नमस्कार कर रही है। अनवरी उठकर खड़ी हो गई। माधुरी चौकी पर ही थोड़ा खिसक गई। माता ने बैठने का संकेत किया। पर वह भीतर से शैला से बोलने के लिए उत्सुक थी। इन्द्रदेव ने कहा-मिस अनवरी! मां का दर्द अभी अच्छा नहीं हुआ। इसके लिए आप क्या कर रही हैं। क्यों मां, अभी दर्द में कमी तो नहीं है? है क्यों नहीं बेटा! तुमको देखकर दर्द दूर भाग जाता है। श्यामदुलारी ने मधुरता से कहा। - तब तो भाई साहब, आप यहीं मां के पास रहिए। दर्द पास न आवेगा। -माधुरी ने कहा। लेकिन बबिरिनिा! और लोग क्या करेंगे? कुंवर साहब यहीं घर में बैठे रहेंगे, तो जो लोग मिलने-जुलने वाले हैं, वे कहां जाएंगे! ____ -अनवरी ने व्यंग्य से कहा। यह बात श्यामदलारी को अच्छी न लगी। उन्होंने कहा-मैं तो चाहती हैं कि इन्द्र मेरी आखों से ओझल न हो। वह करता ही क्या है मिस अनवरी! शिकार खेलने में ज्यादा मन लगाता है। क्यों, विलायत में इसकी बड़ी चाल है न! अच्छा बेटा! यह मेम साहब कौन है? इनका तो तुमने परिचय ही नहीं दिया। मां, इंग्लैंड में यही मेरा सब प्रबंध करती थी। मेरे खाने-पीने का, पढ़ने-लिखने का, कभी जब अस्वस्थ हो जाता तो डॉक्टरों का, और रात-रात-भर जागकर नियमपूर्वक दवा देने का काम यही करती थी। इनका मैं चिर-ऋणी हूं। इनकी इच्छा हुई कि मैं भारतवर्ष