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मुझे तो नहीं मालूम, मैं अपनी मोटर से यहीं उतर पड़ी थी। उनके साथ ही आती; पर क्या करूं, देर हो गई। किसी को पूछ आने के लिए भेजिएगा? मुझे तो आपसे सहायता मिलनी चाहिए मिस अनवरी शैला ने हंसकर कहाआपके कुंवर साहब आ जाएं, तो प्रबंध... अरे शैला! यह कौन... ___ इन्द्रदेव! तुम अब तक क्या कर रहे थे-कहकर शैला ने मिस अनवरी की ओर संकेत करते हुए कहा—आप मिस अनवरी... फिर अपने होठ को गर्म चाय में डुबो दिया, जैसे उन्हें हंसने का दंड मिला हो। इन्द्रदेव ने अभिनंदन करते हुए कहा-मां जब से आईं, तभी से पूछ रही हैं, उनकी रीढ़ में दर्द हो रहा है। आपकी उनसे भेंट नहीं हुई क्या? जी नहीं; मैंने समझा, यहीं होगी। फिर जब यहां चाय मिलने का भरोसा था, तो थोड़ा यहीं ठहरना अच्छा हुआ—कहकर अनवरी मुस्कराने लगी। इन्द्रदेव ने साधारण हंसी हंसते हुए कहा—अच्छी बात है, चाय पी लीजिए। चौबेजी आपको वहां पहुंचा देंगे। ____तीनों चुपचाप चाय पीने लगे। इन्द्रदेव ने कहा—चौबे! आज तुम्हारी गुजराती चाय बड़ी अच्छी रही। एक प्याला ले आओ, और उसके साथ और भी कछ... चौबे सोहन-पापड़ी के टुकड़े और चायदानी लेकर जब आए, तो मिस अनवरी उठकर खड़ी हो गई। इन्द्रदेव ने कहा—वाह, आप तो चली जा रही हैं। इसे भी तो चखिए। शैला ने मुस्कुराते हुए कहा—बैठिए भी, आप तो यहां पर मेरी ही मेहमान होकर रह सकेंगी। हां, इसको तो मैं भूल गई थी—कहकर अनवरी बैठ गई। चौबेजी ने सबको चाय दे दी, और अब वह प्रतीक्षा कर रहे थे कि कब अनवरी चलेगी। पर अनवरी तो वहां से उठने का नाम ही न लेती थी। वह कभी इन्द्रदेव और कभी शैला को देखती, फिर संध्या की आने वाली कालिमा की प्रतीक्षा करती हुई नीले आकाश में आंख लड़ाने लगती। उधर इन्द्रदेव इस बनावटी सन्नाटे से ऊब चले थे। सहसा चौबेजी ने कहा—सरकार! वह बुड्ढा आया है, उसकी कहानी कब सुनिएगा? मैं लालटेन लेता आऊं? . फिर अनवरी की ओर देखते हुए कहने लगे अभी आपको भी छोटी कोठी में पहुंचाना होगा। अनवरी को जैसे धक्का लगा। वह झटपट उठकर खड़ी हो गई। चौबेजी उसे साथ लेकर चले। इन्द्रदेव ने गहरी सांस लेकर कहा—शैला! क्या इन्द्रदेव? मां से भेंट करोगी? चलूं? अच्छा, कल सवेरे!