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और कहा-चलो मोहन! अब घर चलें।

वे दोनों घूमते हुए उसी घाट पर के विशाल वृक्ष के नीचे आए। उसके नीचे पत्थर पर मलिन मूर्ति का भ्रम मोहन को हुआ। उसने धीरे-से रामजस से कहा-चाचा, वह देखो, कौन है?

रामजस ने देखकर कहा-होगा कोई, चलो, अब रात हो रही है। तेरी बुआ बिगड़ेगी।

बुआ! वह तो बात-बात में बिगड़ती है। फिर प्रसन्न भी हो जाती है। हां, मां से मुझे...।

डर लगता है? नहीं बेटा! तितली के दुखी मन में एक तेरा ही तो भरोसा है। वह बेचारी तुम्हीं को देखकर तो जी रही है। हे भगवान्! चौदह बरस पर तो रामचंद्र जी वनवास झेलकर लौट आए थे। पर उस दुखिया का...।

वे लोग बातें करते हुए दूर निकल गए थे। वृक्ष के नीचे बैठी हुई मलिन मूर्ति हिल उठी।

बनजरिया के पास पहंचते-पहंचते रात हो गई। मोहन ने कहा-चाचा! क्या वह भूत था? तुमने मुझे देख लेने क्यों नहीं दिया? इसी से लोग डर जाते हैं? पागल! डर की कौन बात है? तेरा बाप तो डरना जानता ही न था? ।

हां, मैं भी डरता नहीं पर तुमने देखने क्यों नहीं दिया।

मोहन के मन में एक तरह का कुतूहल-मिश्रित भय उत्पन्न हो गया था। वह सुन चुका था कि एकांत में वृक्षों के पास भूत-प्रेत रहते हैं। तब भी वह अपने स्वाभाविक साहस को एकत्र कर रहा था।

तितली ने डांटकर पूछा—क्यों, तू इतनी देर तक कहां घूमता रहा? छुट्टी है तो क्या घर पर पढ़ने को नहीं है?

उसने मां की गोद में मुंह छिपाकर कहा—मां, मैं आज अपनी पुरानी डीह देखने चला गया था। शेरकोट!

दीपक के धुंधले प्रकाश में तितली ने उदासी से रामजस की ओर देखते हुए कहा-रामजस! इस बच्चे के मन में तुम क्यों असंतोष उत्पन्न कर रहे हो? शेरकोट को भूल जाने से क्या उनकी कुछ हानि होगी?

भाभी, शेरकोट मोहन का है। तुमको उसे भी लौटा लेना पड़ेगा, जैसे हो तैसे। मुझे उसके लिए मरना पड़े, तो भी मैं प्रस्तुत हूं। कल मैं स्मिथ साहब के पास जाऊंगा। न होगा तो लगान पर ही उसको मांग लूंगा। मधुबन भइया लौटकर आवेंगे, तो क्या कहेंगे।

उसको हटाने के लिए तितली ने कहा—अच्छा, जाओ। तुम लोग खा-पी लो। कल देखा जाएगा।

तितली एकांत में बैठकर आज रोने लगी! मधुबन आवेंगे? यह कैसी दुराशा उसके मन में आज भीषण रूप से जाग उठी। पुरुषोचित साहस से उसने इन चौदह बरसों से संसार का सामना किया था। किसी से न झुकने की टेक, अविचल कर्तव्य-निष्ठा और अपने बल पर खड़े होकर इतनी सारी गृहस्थी उसने बना ली। पर क्या मधुबन लौट आवेंगे? आकर उसके संयम और उसकी साधना का पुरस्कार देंगे? एक स्नेहपूर्ण मिलन उसके फूटे भाग्य में है?

निष्ठुर विधाता! बचपन अकाल की गोद में! शैशव बिना दुलार का बीता! यौवन के आरंभ में अपने बाल-सहचर 'मधुवा' का थोड़ा-सा प्रणयमधु जो मिला, वह क्या इतना