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हो?

हां।

कुछ चाहिए?

नहीं, अब मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं चला!

मधुबन सिर झुकाकर धीरे-धीरे मेले से बाहर हो गया। उसके मन में यही बात रह-रह कर उठती थी। मरते तो सभी हैं, फिर भगवान् उन्हें पाप करने के लिए उत्पन्न क्यों करता है; जो मरने पर भी पाप ही छोड़ जाते हैं! और तितली।! उसके लड़का कैसा! कब हुआ! हे भगवान! मरते-मरते भी ये सब मन में संदेह का विष उड़ेल गए।

वह निरुद्देश्य चल पड़ा।
 


5.

शैला की तत्परता से धामपुर का ग्राम-संघटन अच्छी तरह हो गया था। इन्हीं कई वर्षों में धामपुर एक कृषि-प्रधान छोटा-सा नगर बन गया। सड़कें साफ-सुथरी, नालों पर पुल, करघों की बहुतायत, फूलों के खेत, तरकारियों की क्यारियां, अच्छे फलों के बाग-वह गांव कृषि-प्रदर्शनी बन रहा था! खेतों के सुंदर टुकड़े बड़े रमणीय थे। कोई भी किसान ऐसा न था, जिसके पास पूरे एक हल की खेती के लिए पर्याप्त भूमि नहीं थी। परिवर्तन में इसका ध्यान रखा गया था कि एक खेत कम-से-कम एक हल से जोतने-बोने लायक हो।

पाठशाला, बैंक और चिकित्सालय तो थे ही, तितली की प्रेरणा से दो-एक रात्रि पाठशालाएं भी खुल गयी थीं। कृषकों के लिए कथा के द्वारा शिक्षा का भी प्रबंध हो रहा था। स्मिथ उस प्रांत में 'बूढ़ा बाबा' के नाम से परिचित था। उसके जीवन में नया उल्लास और विनोद प्रियता आ गई थी। हंसा-हंसाकर वह ग्रामीणों को अपने सुधार पर चलने के लिए बाध्य करता।

हां, उसने ग्रमीणों में अखाड़े और संगीत-मंडलियों का भी खूब प्रचार किया। वह स्वयं अखाड़े जाता, गाने-बजाने में सम्मिलित होता, उनके रोगी होने पर कटिबद्ध होकर सेवा करता। युवकों में स्वयं-सेवा का भाव भी उसने जगाया।

धामपुर स्वर्ग बन गया। इंद्रदेव ने तो मां के लौटा देने पर भी उसकी आय अपने लिए कभी नहीं ली। शैला के सामने धामपुर का हिसाब पड़ा रहता। जिस विभाग में कमी होती, वहीं खर्च किया जाता। वह प्राय: धामपुर आया करती। नंदरानी की प्रेरणा से शैला एक चतुर भारतीय गृहिणी बन गई थी। इंद्रदेव के स्वावलम्बन में वह अपना अंश तो पूरा कर ही देती। बैरिस्टरी की आय, उन लोगों के निजी व्यय के लिए पर्याप्त थी।

और तितली? उसके और खेत बनजरिया से मिल जाने पर बीसों बीघे का एक चक हो गया था, जिसमें भट्टों की जगह बराबर करके धान की क्यारी बना दी गई थी। उसका बालिका-विद्यालय स्वतंत्र और सुंदर रूप से चल रहा था।

दो जोड़ी अच्छे बैल, दो गायें और एक भैंस उसकी पशुशाला में थीं। साफ-सुथरी