पूछा-तो मैं छूट कर क्या करूंगा।
फिर डाके न डालना, और जो चाहे करना।—कहकर वह कोठरी के बाहर हो गया। मधुबन भी निकल गया। फाटक पर उसका पुराना कोट और कुछ पैसे मिले। उस कोट को देखते ही जैसे उसके सामने आठ बरस पहले की घटना का चित्र खिंच गया। वह उसे उठाकर पहन न सका। और पैसे? उन्हें कैसे छोड़ सकता था। उसने लौटकर देखा तो जेल का जंगलेदार फाटक बंद हो गया था। उसके सामने खुला संसार एक विस्तृत कारागार के सदृश झांय-झांय कर रहा था।
उसकी हताश आंखों के सामने उस उजले दिन में भी चारों ओर अंधेरा था। जैसे संध्या चारों ओर से घिरती चली आ रही थी। जीवन के विश्राम के लिए शीतल छाया की आवश्यकता थी। किंतु वह जेल से छूटा हुआ अपराधी! उसे कौन आश्रय देगा? वह धीरे-धीरे बीरू बाबू के अड्डे की ओर बढ़ा। किंतु वहां जाकर उसने देखा कि घर में ताला बंद है। वह उन पैसों से कुछ पूरियां लेकर पानी की कल के पास बैठकर खा ही रहा था कि एक अपरिचित व्यक्ति ने पुकारा मधुबन!
उसने पहचानने की चेष्टा की; किंतु वह असफल रहा। फिर उदास भाव से उसने पूछा—क्या है भाई, तुम कौन हो?
अरे! तुम ननीगोपाल को मूल गए क्या? बीरू बाबू के साथ!
अरे हां ननी तुम हो? मैं तो पहचान ही न सका। इस साहबी ठाट में कौन तुमको ननीगोपाल कहकर पुकारेगा? कहो बीरू बाबू कहां हैं?
क्या फिर रिक्शा खींचने का मन है? बीरू बाबू तो बड़े घर की हवा खा रहे हैं। उनका परोपकार का संघ पूरा जाल था। उन्होंने भर पेट पैसा कमाकर अपनी प्रियतमा मालती दासी का संदूक भर दिया। फिर क्या, लगे गुलछर्रे उड़ाने एक दिन मालती दासी से उनकी कुछ अनबन हुई। वह मार-पीट कर बैठे। उस दिन वह मदिरा में उन्मत्त थे। तुम आश्चर्य करोगे न? हां वही बीरू जो हम लोगों को कभी अच्छी साक-भाजी भी न खाने का, सादा भोजन करने का उपदेश देते थे; मालती के संग में भारी पियक्कड़ बन गए! दूसरों को सदुपदेश देने में मनुष्य बड़े चतुर होते हैं। हां तो वह उसी मार-पीट के कारण जेल भेज दिए गए हैं!
अच्छा भाई! तुम क्या करते हो?—मधुबन ने जल के सहारे बासी और सूखी पूरियां गले में ठेलते हुए पूछा।
तुम्हारे लिए बीरू से एक बार फिर लड़ाई हुई। मैंने उनसे जाकर कहा कि मधुबन के मुकदमें में कोई वकील खड़ा कीजिए। इतना रुपया उसने छाती का हाड़ तोड़कर अपने लिए कमाया है। उन्होंने कहा, मुझसे चोरों-डकैतों का कोई संबंध नहीं! मैं भी दूसरी जगह नौकरी करने लगा।
कहां काम करते हो ननी कोई नौकरी मुझे भी दिला सकोगे?
नौकरी की तो अभी नहीं कह सकता। हां, तुम चाहो तो मेरे साबुन के कारखाने की दूकान हरिहर क्षेत्र के मेले में जा रही है, मेरे साथ वहां चल सकते हो। फिर वहां से लौटने पर देखा जाएगा। पर भाई वहां भी कोई गड़बड़ न कर बैठना।
तो क्या तुमको विश्वास है कि मैंने उस पियक्कड़ को लूटा था और रिक्शा से घसीटकर