रहती है, तब तक लड़का उचककर छीन लेता है। चटपट तमाचों का शब्द होना तुमुल युद्ध के आरंभ होने की सूचना देता है। धौल-धप्पड़, गाली-गलौज, बीच-बीच में फूहड़ हंसी भी सुनाई पड़ जाती है।
इन्द्रदेव चुपचाप वह दृश्य देख रहे थे सोच रहे थे—इतना अकूत धन विदेशों से ले आकर भी क्या इन साहसी उद्योगियों ने अपने देश की दरिद्रता का नाश किया? अन्य देशों की प्रकृति का रक्त इन लोगों की कितनी प्यास बुझा सका है?
सहसा एक लंबी-सी पतली-दुबली लड़की ने पास आकर कुछ याचना की। इन्द्रदेव ने गहरी दृष्टि से उस विवर्ण मुख को देखकर पूछा--क्यों, तुम्हारे पिता-माता नहीं हैं?
पिता जेल में हैं, माता मर गई है।
और इतने अनाथालय?
उनमें जगह नहीं!
तुम्हारे कपड़े से शराब की दुर्गंध आ रही है। क्या तुम...
'जैक' बहुत ज्यादा पी गया था, उसी ने कै कर दिया है। दूसरा कपड़ा नहीं जो बदलूं; बड़ी सर्दी है। कहकर लड़की ने अपनी छाती के पास का कपड़ा मुट्ठियों में समेट लिया।
तुम नौकरी क्यों नहीं कर लेती?
रखता कौन है? हम लोगों को तो वे बदमाश, गिरह-कट, आवारा समझते हैं। पास खड़े होने तो...
आगे उस लड़की के दांत आपस में लड़कर बजने लगे। वह स्पष्ट कुछ न कह सकी।
इन्द्रदेव होंठ काटते हुए क्षण-भर विचार करने लगे। एक छोकरे ने आकर लड़की को धक्का देकर कहा—जो पाती, सब शराब पी जाती है। इसको देना--न देना सब बराबर है।
लड़की ने क्रोध से कहा—जैक! अपनी करनी मुझ पर क्यों लादता है? तू ही मांग ले; मैं जाती हूं।
वह घूमकर जाने के लिए तैयार थी कि इन्द्रदेव ने कहा—अच्छा सुनो तो, तुम पास के भोजनालय तक चलो, तुमको खाने के लिए, और मिल सका तो कोई भी दिलवादूंगा।
छोकरा 'हो-हो-हो!' करके हंस पड़ा। बोला—जा न शैला। आज की रात तो गर्मी से बिता ले. फिर कल देखा जाएगा।
उसका अश्लील व्यंग्य इन्द्रदेव को व्यथित कर रहा था; किंतु शैला ने कहा—चलिए।
दोनों चल पड़े। इन्द्रदेव आगे थे, पीछे शैला। लंदन का विद्युत-प्रकाश निस्तब्ध होकर उन दोनों का निर्विकार पद-विशेप देख रहा था। सहसा घूमकर इन्द्रदेव ने पूछा-तुम्हारा नाम 'शैला' है न?
'हां' कहकर फिर वह चुपचाप सिर नीचा किए अनुसरण करने लगी।
इन्द्रदेव ने फिर ठहरकर पूछा—कहां चलोगी? भोजनालय में या हम लोगों के मेस में?
'जहां कहिए' कहकर वह चुपचाप चल रही थी। उसकी अविचल धीरता से मन-ही-मन कुढ़ते हुए इन्द्रदेव मेस की ओर ही चले।
उस मेस में तीन भारतीय छात्र थे। मकान वाली एक बुढ़िया थी। उसके किए सब काम होता न था। इन्द्रदेव ही उन छात्रों के प्रमुख थे। उनकी सम्मत से सब लोगों ने शैला'