- कौन है रे चौतरिया पर बैठा?
रामदीन उठने लगा था। मधुबन ने उसे बैठे रहने का संकेत किया। वह कुछ बोला भी नहीं, उठा भी नहीं। चिरकिट यह अपमान कैसे सह सकता। उसने आते ही अपना बरतन रामदीन के ऊपर दे मारा। मधुबन को कोयलें की कालिमा से जितनी धृणा थी, उससे अधिक थी चिरकिट के घमंड से। वह आज कुछ उत्तेजित था। मन की स्वाभाविक क्रिया कुछ तीव्र हो उठी। उसने कहा—यह क्या चिरकिट तुमने उस बेचारे पर अपने झूठे बरतन फेंक दिए!
फेंक तो दिए, जो मेरे चौतरिया पर बैठेगा वही इस तरह...वह आगे कुछ कह न सके, इसलिए मधुबन ने कहा—चुप रहो—चिरकिट तुम पाजीपन भी करते हो और सबसे टर्राते हो! वह बरतन मांजकर ईंटें नहीं उठा ले जाएगा। हट जाता है तो तुम भी मांज लेना।
- नहीं, उसको अभी हटना होगा।
- अभी तो न हटेगा। गरम न हो। बैठ जाओ। वह देखो, तसला धुल गया।
क्रोध से उन्मत्त चिरकिट ने कहा यहां धांधली नहीं चलेगी। ढोएंगे कोयला, बनेंगे ब्राह्मण-ठाकुर। तुम्हारा जनेऊ देखकर यहां कोई न डरेगा। यह गांव नहीं है, जहां घास का बोझ लिये जाते भी तुमको देखकर खाट से उठ खड़ा होना पड़ेगा!
मधुबन ने अपने छोटे कुर्ते के नीचे लटकते हुए जनेऊ को देखा, फिर उस चिरकिट के मुंह की ओर। चिरकिट उस विकट दृष्टि को न सह सका। उसने मुंह नीचे कर लिया था, तब भी झापड़ लगा ही। वह चिल्ला उठा—अरे मनवा, दौड़ रे! मार डाला रे!
कुली इकट्ठे हो गए। मधुबन उन सबों में अविचल खड़ा रहा। उसने सोचा कि “अभी समय है। यदि झगड़ा बढ़ा और पुलिस तक पहुंचा तो फिर...? क्षण-भर में उसने कर्तव्य निश्चित कर लिया। कड़ककर बोला-सनो चिरकिट! समय पड़ने पर मेहनत-मजदूरी करके खाने से जनेऊ नीचा नहीं हो जाएगा। आज से फिर कभी तुम ऐसी बात न बोलना; और तुमको मेरा यहां रहना बुरा लगता हो तो लो, हम लोग चले। जहां हाथ-पैर चलावेंगे वहीं पैसा लेंगे।
रामदीन समझ चुका था। उसने कम्बल की गठरी बांधी; दोनों चले। मधुबन को रोककर कलियों का उससे झगड़ा करने का उत्साह न हआ। उसकी भी कलकत्ते में रहने की इच्छा थी। हावड़ा के पुल पर आकर उसने एक नया संसार देखा। जनता का जंगल! सब मनुष्य जैसे समय और अवकाश का अतिक्रमण करके, बहुत शीघ्र, अपना काम कर डालने में व्यस्त हैं। वह चकित-सा चला जा रहा था। घूमता हुआ जब मछुआ बाजार की भीड़ से आगे बढ़ा तो उसको ज्वर अच्छी तरह हो आया था। फिर भी उसे विश्राम के लिए इस जनाकीर्ण नगर में कहीं स्थान न था।
पटरी पर एक जगह भीड़ लग रही थी। एक लड़का अपनी भद्दी संगीत-कला से लोगों का मनोरंजन कर रहा था। रामधारी पांडे एक मारवाड़ी कोठी का जमींदार था। उसके साथ दस-बारह बलिष्ठ युवक रहते थे। उसके नाम के लिए तो नौकरी थी, परंतु अधिक लाभ तो उसको इन नवयुवकों के साथ रहने का था। सब लोग, इस कानून के युग में भी, बाहुबल से कुछ आशा, भय और सहानुभूति रखते थे। सुरती-चूना मलते हुए प्राय: तमोली की दुकान पर वह बैठा दिखाई पड़ता और एक-न-एक तमाशा लगाए रहने से बाजार