धामपुर में एक बार अदृश्य का उपहास बनकर फैल गई थी। फिर प्रकृतिस्थ होकर, तितली के बैठ जाने पर, इंद्रदेव ने कहा-मुझे तुम्हारी सब बातें मालूम हैं। मैं सब तरह की सहायता करूंगा। किंतु जब मधुबन इस समय कहीं जाकर छिप गया है, तब सोच-समझकर कुछ करना होगा। मैं उसका पता लगाने का प्रयत्न करूंगा। और रह गया शेरकोट, उसका कागज मैं देख लूंगा तब कहूंगा! बनजरिया का लगान जमा करवा दूंगा। फिर उसका भी प्रबंध कर दिया जाएगा। तब तक तुम यहीं रहो। क्यों शैला! कल के लिए तुम तितली को निमंत्रित न करोगी?
तितली ने चुपचाप सुन लिया। शैला ने कहा-तितली! कल के लिए, मेरी ओर से निमंत्रण है, तुमको यहीं रहना होगा।
- तितली के मुंह पर उस निरानंद में भी एक स्मित-रेखा झलक उठी।
दूसरे दिन वैवाहिक उत्सव के समाप्त हो जाने पर, तितली वहां से बिना कुछ कहे-सुने कहीं चली गई! शैला और इंद्रदेव दोनों ही उसको बहुत खोजते रहे।
8.
चुनार की एक पहाड़ी कंदरा में रहते हुए, मधुबन को कई सप्ताह हो चुके थे। वह निस्तब्ध रजनी में गंगा की लहरों का. पहाड़ी के साथ टकराने का गंभीर शब्द सना करता। उसके हृदय में भय, क्रोध और धृणा का भयानक संघर्ष चला करता। उसके जीवन में आरंभ से ही अभाव था, पर वह उसे उतना नहीं अखरता था जितना यह एकांतवास। सब कुछ मिलकर भी जैसे उसके हाथ से निकल गया। छोटी-सी गृहस्थी; उसमें तितली-सी युवती का सावधानी से भरा हुआ मधुर व्यवहार; और भी भविष्य की कितनी ही मधुर आशाएं सहसा जैसे आने वाले पतझड़ के झपेटे में पड़कर पत्तियों की तरह बिखरकर तीन-तेरह हो गईं।
वह अपने ही स्वार्थ को देखता, दूसरों के पचड़े में न पड़ा होता, तो आज यह दिन देखने की बारी न आती। उसने मन-ही-मन विचार किया कि समूचा जगत मेरे लिए एक षड़यंत्र रच रहा था। और मूर्ख मैं, एक भावना में पड़कर, एक काल्पनिक महत्त्व के प्रलोभन में फंसकर, आज इस कष्ट में कदर्थित हो रहा हूं।
उसके जीवन का गणित भ्रामक नहीं था। और फल अशद्ध निकलता दिखाई पड़ रहा है। तब यह दोष उसका हो ही नहीं सकता। नहीं, इसमें अवश्य किसी दूसरे का हाथ है!
मुझे पिशाच के भयानक चंगुल में फंसाकर सब निर्दिष्ट आनन्द ले रहे हैं। कौन। राजो.तितली..मैना...सुखदेव...तहसीलदार...और शैला! सब चुपचाप? तब मैं कितने दिनों तक छिपा-छिपा फिरूंगा? और शेरकोट, बनजरिया, उसमें तितली का सुंदर-सा मुख सोचते-सोचते उसे झपकी आ गई। भूख से भी वह पीड़ित था। दिन ढल रहा था; परंतु जब तक रात न हो जाए, बाजार तक जाने में वह असमर्थ था। उसकी निद्रा स्वप्न को खींच लाई।
उसने देखा-तितली हंसती हुई अपनी कुटिया के द्वार पर खड़ी है। उधर इंद्रदेव घोड़े