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लोगों के विनाश का उपाय सोच रहा था। हम लोगों के हटते ही यह सब हो गया। क्या उसको तुम कानूनी सहायता दे सकोगे?

एक सांस में यह सब कहकर शैला उत्सुकता से उत्तर की प्रतीक्षा करने लगी। इंद्रदेव चुप रहे। फिर धीरे-धीरे उन्होंने कहा-मैं अब उस गांव के संबंध में कुछ करना नहीं चाहता! शैला! तुम जानती ही हो इसका क्या फल होगा?

मैं सब जानती हूं। पर तुम अभी कह रहे थे कि मैं जाकर वहां सुधार का काम अधिक वेग से आरम्भ करूं। यदि मेरे कुछ समर्थकों का इस तरह दमन हो जाएगा, तो मैं क्या कर सकूँगी? अभी तो चकबंदी के लिए कितने झगड़े उठाए जाएंगे। तो मैं समझ लूं कि तुम मुझे कानूनी सहायता भी न दोगे!

मैं तो श्रमजीवी हूं शैला मुझे जो भी फीस देगा, उसी का काम करने के लिए मुझे परिश्रम करना पड़ेगा।

तुमको फीस चाहिए! क्या कहते हो इंद्रदेव! इसीलिए तितली की सहायता करने में तुम आनाकानी कर रहे हो न? शैला की वाणी में वेदना थी।

अपनी जीविका के लिए मैं अब दूसरा कोई काम खोज लूं। फिर और लोगों का काम बिना कुछ लिये ही कर दिया करूंगा। तब तक के लिए क्या तुम क्षमा नहीं कर सकती हो? -इंद्रदेव की मुक्तिमयी निश्चित अवस्था व्यंग्य कर उठी।

शैला के हृदय में जो आंदोलन हो रहा था उसे और भी उद्वेलित करते हुए इंद्रदेव ने फिर कहा-और यह पाठ भी तो तुम्हीं से मैंने पढ़ा है। उस दिन, तुमने जब मेरा प्रस्ताव अस्वीकार करते हए कहा था कि 'काम किए बिना रहना मेरे लिए असंभव है, अपनी रियासत में मुझे एक नौकरी और रहने की जगह देकर बोझ से तुम इस समय के लिए छुट्टी पा जाओ,' तब तुम्हारी जो आज्ञा थी, वही तो मैंने किया। अपने इस त्यागपत्र में नील-कोठी को सर्वसाधारण कामों-अर्थात् औषधालय, पाठशाला और हो सके तो ग्रामसुधार संबंधी अन्य कार्यालय के लिए, दान करते हुए मैंने एक निधि उसमें लगा दी है; जिसका निरीक्षण तुमको ही आजीवन करना होगा। उसके लिए तुम्हारा वेतन भी नियत है। इसके अतिरिक्त...।

ठहरो इंद्रदेव! क्या तुम मुझे बंदी बनाना चाहते हो? मैं यदि अब वह काम न करूं तो? -बीच ही में रोककर शैला ने पूछा।

नहीं क्यों? तुमने मुझे जो प्रेरणा दी है, वही करके भी मैं क्या भूल कर गया? और तमने तो उस दिन दीक्षा लेते हए कहा था कि 'तुम्हारे और समीप होने का प्रयत्न हूं' तो क्या यह सब करके भी मैं तुम्हारे समीप होने नहीं पाऊंगा?

क्यों नहीं? -कहते हुए सहसा नंदरानी ने उसी कमरे में प्रवेश किया।

शैला और इंद्रदेव दोनों ही जैसे एक आश्चर्यजनक स्वप्न देखकर ही चौंक उठे। फिर नंदरानी ने हंसते हुए कहा-मिस शैला, आप मुझे क्षमा करेंगी। मैं अनधिकार प्रवेश कर आई हूं। इंद्रदेव से क्षमा मांगने की तो मैं आवश्यकता नहीं समझती।

इंद्रदेव जैसे प्रकृतिस्थ होकर बोले-बैठिए भाभी! आप भी क्या कहती हैं!

शैला ने लज्जा से अब अवसर पाकर नंदरानी को नमस्कार किया। नंदरानी ने हंसकर