इन्द्रदेव को रोककर बूड्ढे ने कहा--आप धामपुर की छावनी पर जाना चाहते हैं? जमींदार के मेहमान हैं न? बंजो! मधुवा को बुला दे, नहीं तू ही इन लोगों को बनजरिया के बाहर उत्तर वाली पगडंडी पर पहुंचा दे। मधुवा!! ओ रे मधुवा!–चौबेजी को रहने दीजिए, कोई चिंता नहीं।
बंजो ने कहा-रहने दो बापू। मैं ही जाती हूं।
शैला ने चौबेजी से कहा-तो आप यहीं रहिए, मैं जाकर सवारी भेजती हूं।
रात को झंझट बढ़ाने की आवश्यकता नहीं, बटुए में जलपान का सामान है। कंबल भी है। मैं इसी जगह रात-भर में इसे सेंक-सांक कर ठीक कर लूगा। आप लोग जाइए।—चौबे ने कहा।
इन्द्रदेव ने पुकारा-शैला! आओ, हम लोग चलें।
शैला उसी झोपड़ी में आई। वहीं से बाहर निकलने का पथ। बंजो के पीछे दोनों झोपड़ी से निकले।
लेटे हुए बुड्ढे ने देखा—इतनी गोरी, इतनी सुंदर, लक्ष्मी-सी स्त्री इस जंगल-उजाड़ में कहां! फिर सोचने लगा—चलो, दो तो गए। यदि वे भी यहीं रहते, तो खाट-कंबल और सब सामान कहां से जुटता। अच्छा चौबेजी हैं तो ब्राह्मण उनको कुछ अड़चन न होगी; पर इन साहबी ठाट के लोगों के लिए मेरी झोपड़ी में कहां...ऊंह! गए, चलो, अच्छा हुआ। बंजो आ जाए, तो उसकी चोट तेल लगाकर सेंक दे।
बुड्ढे को फिर खांसी आने लगी। वह खांसता हुआ इधर के विचारों से छुट्टी पाने की चेष्टा करने लगा।
उधर चौबेजी गोरसी में सुलगते हुए कंडों पर हाथ गरम करके घुटना सेंक रहे थे। इतने में बंजो मधुवा के साथ लौट आई।
बापू! जो आए थे,जिन्हें मैं पहुंचाने गई थी, वही तो धामपुर के जमींदार हैं। लालटेन लेकर कई नौकर-चाकर उन्हें खोज रहे थे। पगडंडी पर ही उन लोगों से भेंट हुई। मधुवा के साथ मैं लौट आई।
एक सांस में बंजो कहने को तो कह गई, पर बुड्ढे की समझ में कुछ न आया। उसने कहा—मधुवा! उस शीशी में जो जड़ी का तेल है, उसे लगाकर ब्राह्मण का घुटना सेंक दे, उसे चोट आ गई है।
मधुवा तेल लेकर घुटना सेंकने चला।
बंजो पुआल में कंबल लेकर घुसी। कुछ पुआल और कुछ कंबल से गले तक शरीर ढक कर वह सोने का अभिनय करने लगी। पलकों पर ठंड लगने से बीच-बीच में वह आंख खोलने-मुंदने का खिलवाड़ कर रही थी। जब आंखें बंद रहतीं, तब एक गोरा-गोरा मुंहकरुणा की मिठास से भरा हुआ गोल-मटोल नन्हा-सा मुंह-उसके सामने हंसने लगता। उसमें ममता का आकर्षण था। आख खुलने पर वही पुरानी झोपड़ी की छाजन! अत्यंत विरोधी दृश्य!! दोनों ने उसके कुतूहल-पूर्ण हृदय के साथ छेड़छाड़ की, किंतु विजय हुई आंख बंद करने की। शैला के संगीत के समान सुंदर शब्द उसकी हत्तंत्री में झनझना उठे! शैला के समीप होने की—उसके हृदय में स्थान पाने की—बलवती वासना बंजो के मन में जगी। वह सोते-सोते स्वप्न देखने लगी। स्वप्न देखते-देखते शैला के साथ खेलने लगी।