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अभी वह थोड़ी दूर सड़क पर पहुंची होगी कि उसी फाटक से एक मोटर उसके पीछे से निकली। उसका शब्द सुनकर, मोटर की ओर देखती हुई, वह एक ओर हटी और उसने पहचान लिया इंद्रदेव और शैला। उसने साहस से पुकारा-बहन शैला।

किंतु शैला ने सुना नहीं। इंद्रदेव मोटर चला रहे थे। वह करुण पुकार दोनों के कान में नहीं पड़ी।

वह स्त्री धीरे-धीरे फाटक में लौट आई, और आम के नीचे जाकर बैठ रही।

शैला जब रजिस्ट्री पर गवाही करके इंद्रदेव के साथ उस बंगले पर लौटी, तो उसे न जाने क्यों मानसिक ग्लानि होने लगी। वह हाथ-मुंह पोंछकर बगीचे में घूमने के लिए चली। एक छोटा-सा चमेली का कुञ्ज था। उसमें फूल नहीं थे। पत्तियां भी विरल हो चली थीं; वह रूखी-रूखी लता, लोहे के मोटे तारों से लिपट गई थी; तीव्र धूप में चाहे उसे कितना ही जलाता हो, फिर भी उसके लिए वही अवलम्ब था। किरणें उसमें प्रवेश करके उसे हंसाने का उद्योग कर रही थीं। शैला उस निस्सहाय अवस्था को तल्लीन होकर देख रही थी।

सहसा तितली ने उसके सामने आकर पुकारा-बहन! मैं कब से तुमको खोज रही हूं। तुमको देखा और पुकारा भी; पर तुमने न सुना। सच है, संसार में सब मुंह मोड़ लेते हैं! विपत्ति में किससे आशा की जाए।

शैला ने घूमकर देखा। यह वही तितली है? कई पखवारों में ही वह कितनी दुर्बल और रक्त-शून्य हो गई है। औखें जैसे निराशा-नदी के उद्गम-सी बन गई हैं। बाहरी रूप-रेखा जैसे शून्य में विलीन होने वाले इंद्रधनुष-सी अपना वर्ण खो रही है। उसे अभी अपने मानसिक विप्लव से छुट्टी नहीं मिली थी। फिर भी उसने संभलते हुए पूछा-तितली! क्या हुआ है बहन! तुम यहां कैसे!

बडे दुःख में पड़कर मैं यहां आई हूं बहन! मैं लुट गई -तितली की रूखी आखों से औसू निकल पड़े।

क्यों मधुबन कहां है। सुनते ही शैला ने पूछा।

पता नहीं। उस दिन गांव में लाठी चली। रामजस को लोग मारने लगे। उन्होंने जाकर रामजस को बचाया, जिसमें छावनी के कई नौकर घायल हो गए। पुलिस की तहकीकात में सब लोगों ने उन्हीं के विरुद्ध गवाही दी। थानेदार ने रुपया मांगा। और मुकद्दमे के लिए भी रुपये की आवश्यकता थी। महंतजी के पास उन्होंने राजो को भेजा। राजो कहती थी कि महंत ने उसके साथ अनुचित व्यवहार करना चाहा। इस पर वहीं छिपे हुए उन्होंने महंत का गला घोंट दिया। राजो तो चली आई। पर उनका पता नहीं!

यहां तक! और जब लड़ाई हुई। तब तुमने मुझे क्यों नहीं कहला भेजा? शैला ने पूछा।

परंतु तितली चुप रही। मैना के संबंध की बात, अपनी उदासी और राजो की सब कथा कहने के लिए जैसे उसके हृदय में साहस नहीं था।

तब क्या किया जाए? उनका पता कैसे लगेगा बहन! इधर शेरकोट पर बेदखली हो गई है। और बनजरिया पर भी डिग्री हुई है, कोई रुपया देता नहीं। मुकदमा कैसे लड़ा जाए? मुझे कोई सहायता नहीं देना चाहता। मैं तो सब ओर से गई। यहां कई वकीलों के पास गई। वे कहते हैं, पहले रुपया ले आओ, तब तुम्हारी बात सुनेंगे। फिर एक सज्जन ने