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शैला और भी कटी जा रही थी। उसको इंद्रदेव की सब बातें निराश हृदय की संतोषभरी सांस-सी मालूम होती थीं। वह देख रही थी नंदरानी को और तुलना कर रही थी तितली से। एक की भरी-पूरी गृहस्थी थी और दूसरी अभाव से अकिंचन; तिस पर भी दोनों परिवार सुखी और वास्तविक जीवन व्यतीत कर रहे थे।

नंदरानी ने कहा-इतना पेटू हो जाना भी अच्छा नहीं होता इंद्रदेव! अपना ही स्वार्थ न देखना चाहिए!

कहां भाभी! मैंने तो अभी कुछ भी नहीं खाया। अभी मिठाइयां तो बाकी ही हैं। तिस पर भी मैं पेटू कहा जाऊं? आश्चर्य!

अरे राम! मैं खाने के लिए थोड़े ही कह रही हूं। अभी तो तुमने कुछ खाया ही नहीं! मेरा तात्पर्य था तुम्हारे ब्याह से।

ओहो तो मैं देखता हूं कि कोई मूर्ख कुमारी मुझसे ब्याह करने की भीख मांगने के लिए तुम्हारे पास पल्ला पसार कर आई थी न! उसको समझा दो भाभी! मैं तो उसके लिए कुछ न कर सकूँगा।

नंदरानी हंसने लगी। शैला से उसने पूछा-क्यों, आप तो कुछ? जी नहीं; मुझे कुछ न चाहिए! कहकर शैला ने उसकी ओर दीनता से देखा।

मुकुंदलाल ने इंद्रदेव से कहा-तुम ठीक कहते हो इंद्रदेव, मैं भूल कर रहा था। स्त्री के लिए पर्याप्त रुपया या सम्पत्ति की आवश्यकता है! पुरुष उसे घर में लाकर जब डाल देता है तब उसकी निज की आवश्यकताओं पर बहुत कम ध्यान देता है। इसलिए मेरा भी अब यही मत हो गया है कि स्त्री के लिए सुरक्षित धन की व्यवस्था होनी चाहिए! नहीं तो तुम्हारी भाभी की तरह वह स्त्री अपने पति को दिन-रात चुपचाप कोसती रहेगी।

नंदरानी अप्रतिभ-सी होकर बोली-यह लो, अब मुझी पर बरस पड़े।

मुकुंदलाल ने और भी गंभीर होकर कहा-अच्छा इंद्रदेव! तुमसे एक बात कहूं? मिस शैला के सामने भी वह बात करने में मुझे संकोच नहीं। यह तो तुम जानते हो कि मैं धीरेधीरे ऋण में डूब रहा हूं। और जीवन के भोग के प्याले को, उसका सुख बढ़ाने के लिए, बहुत धीरे-धीरे दस-बीस बूंद का चूंट लेकर खाली कर रहा हूं। होगा सो तो होकर ही रहेगा। किंतु तुम्हारी भाभी क्या कहेगी। मैं चाहता हूं कि ये दोनों छोटे बंगले मैं नंदरानी के नाम लिख दूं। और फिर एक बार विस्मृति की लहर में धीरे-धीरे डूडू और उतराऊं।

नंदरानी की आखों से दो बूंद औसू टपक पड़े। न जाने कितनी अमंगल और मगंल की कोमल भावनाएं संसार के कोने-कोने से खिलखिला पड़ी। उसने मुकुंदलाल का प्रतिवाद करना चाहा; परंतु नारी-जीवन का कैसा गूढ़ रहस्य है कि वह स्पष्ट विरोध न कर सकी। इतने में इंद्रदेव ने कहा-भाई साहब मुझे एक रजिस्ट्री करानी है! मैं अपनी समस्त सम्पत्ति मां के नाम लिख देना चाहता हूं। क्योंकि...

शैला ने तौलिए से हाथ पोंछते हुए इंद्रदेव की ओर देखा। उसने अभी-अभी इंद्रदेव के अभावों का दृश्य देखा है। उसने सम्पत्ति से और उसकी आशा से भी वंचित होने की मन में ठानी है।

मुकुंदलाल ने कहा-हां, हां, कहो क्योंकि स्त्रियों को ही धन की आवश्यकता है। और संभवत: वे ही इसकी रक्षा भी कर सकती हैं। तो फिर ठीक रहा। कल ही इसका प्रबंध कर