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करना है। इसलिए मैं अभी तो छुट्टी मांग कर जा रही हूं। वहीं पर बातें होगी।

शैला को कहने का अवसर बिना दिए ही वह उठ खड़ी हुई। शैला ने इंद्रदेव की ओर जिज्ञासा-भरी दृष्टि से देखा।

नंदरानी ने हंसकर कहा-इन्हें भी वहीं ब्यालू करना होगा।
शैला ने सिर झुकाकर कहा-जैसी आपकी आज्ञा।

नंदरानी चली गई। शैला अभी कुछ सोच रही थी कि मिसिर ने आकर पूछा-ब्यालू के लिए...।

उसकी बात काटते हुए इंद्रदेव ने कहा-हम लोग आज बड़े बंगले में ब्यालू करेंगे। वहां, घीसू से कह दो कि मेरे बगल वाले कमरे में मेम साहब के लिए पलंग लगा दे।

मिसिर के जाने पर शैला ने कहा-मैं तो कोठी पर चली जाऊंगी। यहां झंझट बढ़ाने से क्या काम है। मुझे तो यहां आए दो सप्ताह से अधिक हो गया। वहां तो मुझे कोई असुविधा नहीं है।

इंद्रदेव ने सिर झुका लिया। क्षोभ से उनका हृदय भर उठा। वह कुछ कड़ा उत्तर देना चाहते थे। परंतु संभलकर कहा-हां शैला तुमको मेरी असुविधा का बहुत ध्यान रहता है। तुमने ठीक ही समझा है कि यहां ठहरने में दोनों को कष्ट होगा।

किंतु यह व्यंग्य शैला के लिए अधिक हो गया। इंद्रदेव को वह मना लेने आई थी। वह इसी शहर में रहने पर भी आज कितने दिनों पर उनसे भेंट करने आई, इस बात का क्या इंद्रदेव को दुख न होगा? आने पर भी वह यहां रहना नहीं चाहती। इंद्रदेव ने अपने मन में यही समझा होगा कि वह अपने सुख को देखती है। शैला ने हाथ जोड़कर कहा-क्षमा करो इंद्रदेव! मैंने भूल की है।

भूल क्या? मैं तो कुछ न समझ सका।

मैंने अपराध किया है। मुझे सीधे यहीं आना चाहिए था। किंतु क्या करूं, रानी साहिबा ने मुझे वहीं रोक लिया। उन्होंने बीबी-रानी के नाम अपनी जमींदारी लिख दी है। उसी के लिखाने-पढ़ाने में लगी रही। और मैंने उसके लिए आकर तुम्हारी सम्मति नहीं ली, ऐसा मुझे न करना चाहिए था।

मैं तो समझता हूं कि तुमने कुछ मूल नहीं की। मुझे उसके संबंध में कुछ कहना नहीं था। हां, यह बात दूसरी है कि तुम यहां क्यों नहीं आ पायी। उसे लिखाते-पढ़ाते रहने पर भी तुम एक बार यहां आ सकती थीं। किंतु तुमने सोचा होगा कि इंद्रदेव स्वयं अपने लिए तंग होगा, मैं वहां चलकर उसे और भी कष्ट दूंगी। यही न? तो ठीक तो है। अभी मेरी बैरिस्टरी अच्छी तरह नहीं चलती, तो भी इन कई महीनों में सादगी से जीवन-निर्वाह करने के लिए मैं रुपये जुटा लेता हूं। मुझे सम्पत्ति की आवश्यकता नहीं शैला!

शैला ने देखा, इंद्रदेव के मुंह पर दृढ़ उदासीनता है। वह मन-ही-मन कांप उठी। उसने सोचा कि इंद्रदेव को आर्थिक हानि पहुंचाने में मेरा भी हाथ है। वह कुछ कहना ही चाहती थी कि इंद्रदेव बीच में ही उसे रोककर कहने लगे-मैं संकुचित हो रहा था। मुझे यह कहकर मां का जी दुखाने में भय होता था कि-मैं संपत्ति और जमींदारी से कुछ संसर्ग न रखूंगा। अच्छा हुआ कि उन्हीं लोगों ने इसका आरम्भ किया है। तुमको अब यहां कुछ दिनों तक और ठहरना होगा; क्योंकि नियमपूर्वक लिखा-पढ़ी करके मैं समस्त अधिकार और अपनी