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  मधुबन का हाथ अपने कमर में बंधी थैली पर जा पड़ा। ओह! हत्या का प्रमाण तो उसी के पास है। उसने धीरे से उसे कमर से खोल कर पलंग पर रख दिया। थैली का रंग लाल था। उसे देखते-ही-देखते मधुबन की आंखें चढ़ गईं।

मैना ने देखा कि मधुबन उन्मत्त-सा हो गया है। उसे झिंझोड़कर उसने हिला दिया, क्योंकि मधुबन का वह रूप देखकर मैना को भी भय लगा। उसने पूछा—क्यों बोलते नहीं?

मधुबन को सहसा चेतना हुई। उसने धीरे-से शैली खोलकर उसमें से गिन्नियां और रुपये पलंग पर रख दिए। मैना को तो चकाचौंध-सी लग गई।

मधुबन ने धीरे-से लैम्प की चिमनी उतारकर उसकी लौ से थैली लगा दी। वह भकभक करके जल उठी।

अब तो मैना से न रहा गया। उसने मधुबन का हाथ पकड़कर कहा-तुम कुछ न कहोगे तो मैं मां को बुलाती हूं। मुझे डर लग रहा है।

मैंने खून किया है—मधुबन ने अविचल भाव से कहा। बाप रे! यह क्यों? मुझे रुपये देने के लिए?

मैना का श्वास रुकने लगा। उसने फिर संभलकर कहा—मैं तो बिना रुपये की तुम्हारी ही थी। यह भला तमने क्या किया?

जो करना था कर दिया। अब बताओ, तुम मुझे यहां छिपा सकती हो कि नहीं? मैं कल यहां से जाऊंगा। रात भर में मुझे जो कुछ करना है, उसे सोच लूंगा। बोलो!

मधुबन बाबू! प्राण देकर भी आपकी सेवा करूंगी; पर आप यह तो बताइए कि ऐसा क्यों?

क्यों—मत पूछो। इस समय मुझे अकेले छोड़ दो। मैं सोना चाहता हूं।

मैना ने स्थिर होकर कुछ विचार किया। उसने कहा—तो मेरी बात मानिए। जैसा मैं कहती हूं। वैसा कीजिए।

मधुबन ने कहा—अच्छा, जो तुम कहो वही करूंगा।

मैना ने पलंग पर से चादर को रुपयों समेत बटोर लिया और धीरे से दूसरी छोटी कोठरी में चली गई।

थोड़ी देर के बाद जब वह उसमें से निकली तो उसके मुंह पर चंचलता न थी। हाथ में एक कटोरा दूध था। मधुबन के मुंह से लगाकर उसने कहा—पी जाइए।

मधुबन बच्चों की तरह पीने लगा—उसका कंठ प्यास से सूख रहा था। दूध पीकर मधुबन ने मैना से कहा—मैं कुछ दिनों के लिए धामपुर छोड़ देना चाहता हूं। रामजस वाले मामले में पुलिस मेरे पीछे पड़ी है। अब एक और काण्ड हो गया है। मैना! तुम वेश्या हो तो क्या, न जाने क्यों मैं तुम्हारे ऊपर विश्वास करता हूं। तुम तितली की रक्षा करना, वह निरपराध!

इसके आगे मधुबन कुछ न कह सका। वह सिसककर रोने लगा। मैना की आखों से भी औसू बहने लगे। उसने बड़ी देर तक मधुबन को समझाया और कहा कि घबराने की कोई बात नहीं। तम सीधे गंगा के किनारे-किनारे भागो, फिर चुनार जाकर रेल पर चढ़ना। इधर कोई तुम्हारा पता न पावेगा। एक पहर रात रहते मैं तुम्हें जगा दूंगी। इस समय सो