भाग! अब मैं चला!
मधुबन तो अंधकार में चला गया। राजकुमारी थर-थर कांपती हुई माधो के पास पहुंची।
सड़क पर सन्नाटा हो गया था। देहाती बाजार में पहर-भर रात जाने पर बहुत ही कम लोग दिखाई पड़ रहे थे। मिठाई की दुकान पर माधो खा-पीकर संतुष्टि की झपकी ले रहा था। राजकुमारी ने उसे उंगली से जगाकर अपने पीछे आने के लिए कहा। दोनों बाजार के बाहर आए। एक्के वाला एक तान छेड़ता हुआ अपने घोड़े को खरहरा कर रहा था। राजकुमारी ने धीरे-से शेरकोट की ओर पैर बढ़ाया। दोनों ही किसी तरह की बात नहीं कर रहे थे। थोड़ी ही दूर आगे बढ़े होंगे कि कई आदमी दौड़ते हुए आए। उन्होंने माधो को रोका। माधो ने कहा—क्यों भाई! मेरे पास क्या धरा है, क्या है?
हम लोग एक स्त्री को खोज रहे हैं। वह अभी-अभी बिहरिजी के मंदिर में आई थी-उन लोगों ने घबराए हुए स्वर में कहा।
यह तो मेरी लड़की है। भले आदमी, क्या दरिद्र होने के कारण राह भी न चलने पावेंगे? यह कैसा अत्याचार? कहकर माधो आगे बढ़ा। उसके स्वर में कुछ ऐसी दृढ़ता थी कि मंदिर के नौकरों ने उसका पीछा छोड़कर दूसरा मार्ग ग्रहण किया।
6.
मधुबन गहरे नशे से चौंक उठा था। हत्या! मैंने क्या कर दिया? फांसी की टिकठी का चित्र उसके कालिमापूर्ण आकाश में चारों ओर अग्निरेखा में स्पष्ट हो उठा। इमली के घने वृक्षों की छाया में अपने ही श्वासों से सिहर कर सोचता हुआ वह भाग रहा था।
तो, क्या वह मर गया होगा? नहीं—मैंने तो उसका गला ही घोट दिया है। गला घोटने से मूर्छित हो गया होगा। चैतन्य हो जाएगा अवश्य?
थोड़ा-सा उसके हृदय की धड़कन को विश्राम मिला। वह अब भी बाजार के पीछेपीछे अपनी भयभीत अवस्था में सशंक चल रहा था। महन्त की निकली हुई आंखें जैसे उसकी आखों में घुसने लगीं। विकल होकर वह अपनी आखों को मूंदकर चलने लगा, उसने कहा—नहीं, मैं तो वहां गया भी नहीं था। किसने मुझको देखा? राजो! हत्यारिन! ओह उसी की बुलाई हुई यह विपत्ति है। यह देखो, इस वयस में उसका उत्पात! हां, मार डाला है मैंने, इसका दण्ड दूसरा नहीं हो सकता। काट डालना ही ठीक था। तो फिर मैंने किया क्या, हत्या? नहीं! और किया भी हो तो बुरा क्या किया।
उसके सामने महन्त की निकली हुई आखों का चित्र नाचने लगा। फिर—तितली का निष्पाप और भोला-सा मुखड़ा। हाय-हाय। मधुबन! तूने क्या किया! वह क्या करेगी? कौन उसकी रक्षा करेगा?
उसका गला भर आया। वह चलता जाता था और भीतर-ही-भीतर अपने रोने को, सांसों को, दबाता जाता था। उसे दूर से किसी के दौड़ने का और ललकारने का भ्रम हुआ।–