अधिक उपद्रव न बढ़ाओं, जो किया सो अच्छा किया।
अभी मधुबन उसको समझा ही रहा था कि छावनी से दस लट्ठबाज दौड़ते हुए पहुंच गये । 'मार-मार' की ललकार बढ़ चली । मधुबन ने देखा कि रामजस तो अब मारा जाता है। उसने हाथ उठाकर कहा—भाइयों, ठहरो, बिना समझे मारपीट करना नहीं चाहिए।
यही पाजी तो सब बदमाशी की जड़ है ।-कहकर पीछे से तहसीलदार ने ललकारा। दनादन लाठियां छूट पड़ीं । दो-तीन तक तो मधुबन बचाता रहा, पर कब तक! चोट लगते ही उसे क्रोध आ गया। उसने लपककर एक लाठी छीन ली और रामजस की बगल में आकर खड़ा हो गया।
इधर दो और उधर दस। जमकर लाठी चलने लगी । मधुबन और रामजस जब घिर जाते तो लाठी टेककर दस-दस हाथ दूर जाकर खड़े हो जाते । छ: आदमी गिरे और रामजस भी लहू से तर हो गया ।
गांव वाले बीच में आकर खड़े हो गये । लड़ाई बन्द हुई । मधुबन रामजस को अपने कंधे का सहारा दिये धीरे-धीरे बनजरिया की ओर ले चला ।
कच्ची सड़क के दोनों ओर कपड़े, बरतन, बिसातखाना और मिठाइयों की छोटी-बड़ी दूकानों से अलग, चूने से पुती हुई पक्की दीवारों के भीतर, बिहरिजिा का मन्दिर था। धामपुर का यहीं बाजार था। बाजार के बनियों की सेवा-पूजा से मंदिर का राग-भोग चलता ही था, परन्तु अच्छी आय थी महन्तजी को सूद से । छोटे-छोटे किसानों की आवश्यकता जब-जब उन्हें सताती, वे लोग अपने खेत बड़ी सुविधा के साथ यहां बन्धक रख देते थे।
महन्तजी मन्दिर से मिले हुए, फूलों से भरे, एक सुन्दर बगीचे में रहते थे। रहने के लिए छोटा, पर दृढ़ता से बना हुआ, पक्का घर था। दालान में ऊंचे तकिये के सहारे महन्तजी प्राय: बैठकर भक्तों की भेंट और किसानों का सूद दोनों ही समभाव से ग्रहण करते । जब कोई किसान कुछ सूद छोड़ने के लिए प्रार्थना करता तो वह गम्भीरता से कहते-भाई, मेरा तो कुछ है नहीं, यह तो श्री बिहरिजी की विभूति है, उनका अंश लेने से क्या तुम्हारा भला होगा?
भयभीत किसान बिहरिजी का पैसा कैसे दबा सकता था ? इसी तरह कई छोटी-मोटी आसपास की जमींदारी भी उनके हाथ आ गई थी। खेतों की तो गिनती न थी।
संध्या की आरती हो चुकी थी । घंटे की प्रतिध्वनि अभी दूर-दूर के वायुमंडल में गूंज रही थी । महन्तजी पूजा समाप्त करके अपनी गद्दी पर बैठे ही थे कि एक नौकर ने आकर कहा—ठाकुर साहब आए हैं।
ठाकुर साहब-जैसे चौंककर महन्त ने कहा ।
हां महाराज !- अभी वह कही रहा था कि ठाकुर साहब स्वयं आ धमके । लम्बे-चौड़े शरीर पर खाकी की आधी कमीज और हाफ-पैण्ट, पूरा मोजा और बूट, हाथ में हण्टर !