पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/८६

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में देवताओं का। पर वास्तव में दोनों में कुछ भेद भी है। यदि देवता परमात्मा की विभूति है तो फरिश्ता अलाह का चाकर । यदि देवता परमात्मा का प्रतिनिधि है तो फरिश्ता उसका सामान्य कर्मचारी । देवता अल्लाह का स्वरूप है तो फरिश्ता उसका दास । सूफियों ने यह देख कर एक अोर तो फरिश्तों में उन शक्तियों का अारोप किया जिनसे संसार का शासन होता है और दूसरी ओर ऐसे देवाराधन को भी विहित समझा जिसमें प्रियतम की विभूतियों का अर्चन किया जाता है। कुछ लोगों की धारणा है कि प्रारंभ में 'इलाह' एवं 'इलोहिम' प्रकृति की दिव्य' शक्ति अथवा परमात्मा की विभूति के द्योतक थे ; प्रतीक के रूप में उनकी उपासना प्रच- लित थी। यदि यह ठीक है तो देवता तथा फरिश्ता का प्रादि-रूप एक ही था। बहोवा एवं श्रष्टाह ने जिन देवी-देवताओं को हटाकर अपना एकत्र आधिपत्य स्थापित किया उसका पुनः आविर्भाव फरिश्तों के रूप में अनिवार्य था। जातियों के साथ ही उनके देवता भी मृत्य बनते हैं। निदान प्राचीन देवता अल्लाह के भृत्य चा चाकर बने। उसकी आज्ञा के पालन में लग गए। लोगोंने उनको फरिश्तों के रूप में याद किया। सूफियों की श्रास्था इन फरिश्तों पर है। सूफी फरिश्तों से डरते हैं । उनका अदब करते हैं। परंतु इससे अधिक महत्त्व उनको नहीं देते। उनके मत में साधु सूफी संत फरिश्तों से बढ़कर हैं। इसलाम में फरिश्तों की स्थिति कुछ विलक्षण सी है 1 उसके स्पष्टीकरण का एक मौलाना ने जो उद्भट प्रयत्न किया है उसका समर्थन कुरान से हो नहीं सकता। हम उनको निरा प्रतीक मान नहीं सकते। कुरान में फरिश्तों की सत्ता ही तो आदमी को अल्लाह से अलग रखती है ! उनको आपस में मिलने-जुलने नहीं देती ? इमाम गजाली ने तो फरिश्तों की कोटियों एवं उनके देश को निर्धारित कर स्पष्ट कर दिया कि फरिश्तों की स्वतंत्र सत्ता और उनकी एक अलग जाति है। फिर भला उक्त मौलाना के कथनानुसार उनको शुभ- १ इसराएल, पृ० २४१ । २ दी होली कुरान (प्राक्कथन ), पृ० १२ । ३ मुसलिम थीयालोजी, पृ० २३४ ।