पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/४८

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विकास है। समाधि में उसका साक्षात्कार हमें हो जाता है; अतः हम परमानंद से वंचित नहीं रह सकते । प्लोटिनस का यह आनंद प्रज्ञा एवं प्रेम का प्रसव है, किसी उमंग या उल्लास का फल नहीं। इसमें संयम है, नियम है, तप है; किन्तु हठ का नाम नहीं । प्लोटिनस दृढ़ता के साथ आग्रह करता है कि यदि आत्मा परमात्मा के अनुरूप न होती तो उसको उसका साक्षात्कार किस प्रकार संभव था। संक्षेप में, प्लोटिनस ने जिज्ञासु प्रेमियों के लिये एक राजमार्ग निर्धारित कर दिया, जिस पर चलकर न जाने कितने पथिक अपने लक्ष्य में लीन हुए। सूफियों ने उसके ऋण को स्वीकार कर उसे 'शेख अकबर' के रूप में अपना लिया। इसकंदरिया का यह अनुपम प्रसव शामी संतों का सद्गुरु हो गया। वास्तव में ग्लोटिनस ने संत मत को जीवन-दान दिया और साक्षात्कार के मार्ग को प्रशस्त तथा प्रांजल कर दिया । फीलो, प्लोटिनस तथा डायोनीसियस के प्रयत्न से मादन-भाव को जो प्रोत्साहन मिला इससे उसके बाह्य तथा आभ्यंतर दोनों पक्ष पुष्ट हो चले थे ; किंतु वह पंख पसार संसार में स्वच्छंद विहार नहीं कर सकता था । मादन-भाव के संबंध में अब तक जो कुछ निवेदन किया गया उससे इतना तो स्पष्ट ही है कि उसको सदैव समझ-बूझकर आगे बढ़ना एवं फूक पूँकर पाँव बढ़ाना पड़ा-संभवतः इसी से उसमें अधिक रमणीयता भी आ गई। यहोवा के उपासकों ने उसके विध्वंस की जो उप्र चेया की उससे हम भली भाँति परिचित हैं। मसीही प्रचारकों को भी वह क्षम्य न था। मसीह ने पिता का राज्य पृथिवी पर स्थापित करने का संकल्प किया, चपत खाकर गाल फेरने की शिना दी, जनता में प्रेम-भाव का प्रचार किया ; किंतु भक्तों ने गाल फेरकर चकमा देना प्रारंभ किया। खाकर मुँह फेरना उचित समझा । मुँह ने प्यार करना प्रारंभ किया और हाथ ने वध । एक मसीही मर्मज्ञ ने ठीक ही कहा है कि मसीहियों का प्रेम केवल पारस्परिक था; वह भी इसलिये कि लोग समझ सकें कि उनमें प्रेम है। फलतः मसीही-संघ का ध्येय धावा और ध्वंस हो गया। संग्रह एवं (1) दी रेलिजन्स पाव इंडिया (हापकिस), पृ. ५६६ । (२)दी फोर्थ गारपेल ( स्काट), पृ० ११५ ।