पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/४५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तसव्वुफ अथवा सूफीमत गया है कि वास्तव में यह 'बुल्द' बुद्ध का रूपांतर है। मानी मत में बुद्धमत की भाँति ही स्त्री-पुरुष दोनों ही दीक्षित होते थे। मानीमत भी व्यापक, शांत, तपी और असंसारी है। बुद्धि, विवेक, विचार, भावना और कल्पना उसके मत के प्रधान अंग या पंचगुण हैं। उसने ईश्वर को कंचन प्रकाश प्रतिपादित किया। उसके मत में ईश्वर की कृपा का विशेष महत्त्व है। संक्षेप में गुरु-शिष्य-परंपरा का विधान कर, मूर्तियों का खंडन तथा जन्मांतर का निरूपण कर मानो ने जिस समन्वयवादी मत का प्रचार किया उसका दर्शन सूफीमत के रूप में प्रायः मिला करता है। सूफियों का स्वतंत्र दल, जो जिदीक के नाम से प्रसिद्ध है, वस्तुतः मानीमत का अवशिष्ट है। स्वयं मानी को प्राण-दंड मिला और उसके मत की प्राण-प्रतिष्ठा तसव्वुफ में हो गई। एक विद्वान् ने ठीक ही कहा है कि मानीमत के अवशिष्ट पदों में माधुर्य- भाव का अर्चन करना चाहिए। अन्य महाशय का पालभ है कि केवल रति के आधार पर परमेश्वर की आराधना करना मानीमत का अपराध है ; इन जिंदीको को काम-वासना में ईश्वर की भक्ति सूझती है। कहने की आवश्यकता नहीं कि सूफीमत का सामान्य रूप मानीमत में खिल उठा। शामी शांति के भूखे थे। पर शांति की ओट में मसीहियों ने जिस अशांति का बीज बोया उससे हमारा कुछ मतलब नहीं। यहाँ हमको तो केवल इतना देख लेना है कि रोम तथा यूनान में पहुँचकर मसीही मत किस रूप में ढल गया। रोमक शक्ति के उपा- सक थे। उनका अधिकतर सम्बन्ध शासन से रहा है। उनमें भी गुह्य टोलियों थीं, किन्तु उनसे प्रकृति विषय में कुछ विशेष सहायता नहीं मिलती। यूनानी सौंदर्य के भक्त थे। उनकी जिज्ञासा ने काम-वासना को जो परम रूप दिया वह सदा पल्लवित होता रहा । अफलातून की प्रतिभा ने जिस प्रेम का निरूपण किया वह विषय-जन्य होने पर भी अलौकिक था । प्रज्ञा और प्रेम के प्रणय से अफलातून ने जिा समाज का स्वप्न देखा उसका प्रत्यक्ष दर्शन भले ही किसी को न मिला हो, किन्तु उसके ... (१) मोरीजिन आव मानीकीम, पृ० ३० । २) स्टडीज इन दी साइकालोजी प्राव दी मिस्टिक्स, पृ० १६१.२॥