पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/४४

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विकास प्रचार ही नहीं, अपितु उसका प्रतिपादन भी हो रहा था। सूफियों का एक पुराना नाम नास्टिक भी है। पौलुस के संदेशों में जिन विवादियों का उल्लेख किया गया है वे वास्तव में नास्टिक ही हैं। तसव्वुफ पर नास्टिक मत का प्रभाव सभी मानते हैं, पर इस बात पर ध्यान नहीं देते कि सूफी मत का एक पुराना रूप नास्टिक मत भी है । इमारी दृष्टि में वास्तव में दोनों एक ही मत के दो भिन्न-भिन्न रूप हैं जो अपनी प्राचीन परम्परा का पूरा पूरा पता देते हैं। नास्टिकों को बिखरी शक्ति का संपादन कर मानी ने जिस मत का प्रवर्तन किया वह सहसा भारत से स्पेन तक फैल गया । मसीही उससे दहल उठे । मादन- भाव के विकास अथवा सूफी मत के इतिहास में मानी मत के योग पर पूरा ध्यान नहीं दिया जाता । मानी ने मतों का समन्वय कर जो स्थिति उत्पन्न की उसका प्रभाव स्वयं मुहम्मद साहब पर कम न पड़ा। मुहम्मद साहब ने मसीह के जीवन तथा मरण के संबंध में जो संदेह किया उसकी प्रेरणा इसी मत से मिली थी। उन पर भी आरंभ में मानी मत का आरोप किया गया था। कुछ लोग उन्हें भी मानी का अनुयायी समझते थे। यही नहीं, हल्लाज को इसी मत का प्रचारक कहकर दंड दिया गया और आगे चलकर मानी के भक्त जिदीक के नाम से ख्यात हुए। मसीही संघ को व्याकुल करने तथा अपने को मसीह एवं बुद्ध घोषित करने- वाला मानी जन्मतः पारसी था। उसका जन्म संवत् १०२ में बगदाद में हुआ था। जिज्ञासा की प्रबल प्रेरणा से उसने भारत तथा चीन की यात्रा की। उस पर बौद्धमत का अकथ प्रभाव पड़ा । मसीही लेखक उसको टिरिविथस ( त्रिविशत ) बुद्ध कहते हैं । पीरोज की मुद्राओं पर उसका नाम 'बुल्द'मय अंकित है। कहा (१) दो अली डेवेलपमेंट श्राव मोहेम्मेडनिज्म, पृ० १४४ । (२) ओरिजिन भाव मानीकीज्म, पृ० १५ । (३) थीज्म इन मीटीवल इंडिया, पृ० ९१ । (४) ओरिजिन श्राव मानीकीज्म (मुसलिम रिव्यूत्र का लेख )