पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/३९

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२२ तसव्वुफ अथवा सूफीमत ईश्वरपरक नहीं बताते । परन्तु परम्परागत प्रमाणों से सिद्ध होता है कि उनका धार्मिक महत्त्व अवश्य ही सदा बना रहा है। फीलो, ओरिगन, टर्दुलियन श्रादि मनीषियों की दृष्टि में प्राध्यामिक विवाह ही इन गीतों में इष्ट है । परमात्मा और जीवात्मा, ईश्वर और भक्त ही इन गीतों के दुलहा तथा दुलहिन है। ध्यान देने से इन गीतों की क्रियाओं तथा सर्वनामों में लिग विषय गोचर होता है। स्त्रीलिंग के स्थल पर पुल्लिंग का प्रयोग भी इनमें मिल जाता है । जान पड़ता है कि इन गीतों में स्त्री और पुरुष दोनों ही क्रमशः पाश्रय तथा बालंबन है। एकिये इनको सर्वपुनीत और जोजेफस इनको ईश्वरपरक समझता था । हसीअ भी इनसे अनभिज्ञ नहीं । सारांश यह कि इन गीतों के अध्यात्म का आभास धर्मपुस्तक में भी मिलता है और इन्हीं के आधार पर मसीह दुलहा तथा संघ वा संस्था दुलहिन बनते चले अा रहे हैं। सच तो यह है कि इनमें सूफियों का इश्क हकीकी इश्क मजाजो के परदे में छिपा है । लौकिक प्रेम के आधार पर अलौकिक प्रेम का निरूपण ही इनका प्रति- पाद्य विषय है । आज भी सूफी इन गीतों की पद्धति पर पद-रचना करते हैं । अस्तु इन ‘सन्धा' गीतों को उन नबियों का प्रसाद समझना चाहिये जो उलास के विधायक और मादन-भाव के भक्त थे। उक्त गीतों के अतिरिक्त प्राचीन धर्मपुस्तक में कतिपय स्थल और भी ऐसे हैं जिनके आधार पर भली भाँति सिद्ध किया जा सकता है कि नबियों की उक्त परंपरा बराबर चलती रही। प्रेम के अनन्तर सूफियों में संगीत का प्रचार है। प्राचीन धर्म- (१) क्रिस्चियन मिस्टीसिज्म, पृ. ३७० । (२) दी सांग आव सांग्जा, पृ० ८। (३) दी सांग प्राव सांग्ज, पृ. ८८ । १ इसको कुछ पंडितों ने 'सन्ध्या' माना है और 'सन्धा भाषा' अशुद्ध समझा । परन्तु तंत्र-साहित्य में अधिकांश प्रयोग ‘सन्धा' शब्द का ही हुआ है अतः 'सन्धा भाषा' के दंग पर हमने 'सन्धा' गीत का व्यवहार किया है।