पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/३५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ससव्वुफ अथवा सूफीमत यरमियाह उनके विनाश पर तुल गया। अमूस ,और इसी ने भी कुछ उठा नहीं रखा । फलतः देवदास ( अमरद ) कुत्ते कहलाए और देवदासियों की दुर्गति होने लगी ; परंतु उक्त नबियों की वेतसी-वृत्ति और मानव-भाव-भूमि ने उनकी सदैव रक्षा की और उनकी परंपरा समय समय पर फलती फलती और अपना बल दिखाती रही । हाँ, उन्हीं की भावना का प्रसाद प्रचलित सूफीमत है जो अन्य मतों के संसर्ग से इतना प्रोत-प्रोत हो गया है कि अब उसके उद्गम के विषय में न जाने कितने मत चल पड़े हैं ; किन्तु निश्चय ही सूफियों के परदादा उक्त नबी ही हैं जो सहजानंद के उपासक और उल्लास के परम भक्त थे । सत्त्व-शुद्धि के लिये उनमें नाना प्रकार के उपचार प्रचलित थे और वे प्रियतम के संयोग के लिये परम प्रेम का राग अलापते थे। जिन मनीषियों ने उनकी पूरी छान-बीन और आधुनिक दरवेशों का प्रत्यक्ष दर्शन किया है उनकी भी कुछ यही राय है । हाँ, मसीह या मुहम्मद तक ही दृष्टि दौड़ानेवाले समीक्षक अभी उसको स्वीकार नहीं करते । फिर भी आशा होती है कि उक्त विवेचन के आधार तथा अन्य पंडितों के प्रमाण पर किसी मनीषी को इसमें आपत्ति न होगी कि वास्तव में मादन-भाव के जन्मदाता उक्त नबी ही हैं और उन्हीं की भावना एवं धारणा की रक्षा का सञ्चा प्रयत्न सूफीमत वा तसव्वुफ है । (१) यरमियाद, २६.७-१६, २३.६-४० । (२) विवाद, २३.१८ 1 (३) इसराएल नामक पुस्तक (० २४३) में लाड्स महोदय लिखते है कि देव-संतानों या देवताओं का विवाह नर-नारियों को साथ यहोवा के उपासकों को भी मान्य था। अरब भी इस विश्वास के कायल थे कि किसी जिन का प्रणय किसी इंसान के साथ हो जाता है । अरबी सा उद्भट विद्वान् भी इस प्रकार के प्रणय में विश्वास करता था । कहने का तात्पर्य यह कि इस प्रकार के प्रणय में उस समय जनता का पूरा विश्वास था और प्रियतम के परम होने के कारण प्रेम को भी परम होना पड़ा। देखिए- उत्पत्ति, ६.१-४॥ (४) इसराएल, पृ० ४४४ ; दी स्पिरिट श्राव इसलाम, पृ० ४७१५० ए. इन प्रो. सि०, पृ० ११२ ; दो रे० आव दी हेल, पृ० ११६ ।