पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२६

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उद्भव शामी जातियों में बाल, कादेश, ईस्तर प्रभृति जो देवी-देवता थे उनके मंदिरों में समर्पित संतानों का जमघट था । उक्त मंदिरों में जो अतिथि आते थे उनके कात्कार का भार उन्हीं समर्पित संतानों पर था। अतिथि सत्कार की उनमें इतनी प्रतिष्ठा थी कि किसी प्रकार का रति-दान पुण्य ही समझा जाता था। प्रणय की प्रतिष्ठा और सतीत्व की मर्यादा निर्धारित हो जाने से सत्त्व-प्रधान संतानों ने उक्त दान से अपने को अलग रखना उचित समझा। अपने प्रियतम के संयोग के लिए दे सदैव तड़पती रहीं। किसी अन्य अतिथि को रति-दान दे उसके सुख से सुखी नहीं हुई । सूफियों के व्यापक विरह का उदय उन्हीं में हुआ। यद्यपि संसार के सभी देशों में देवदासियों का विधान था; पर वास्तव में सूफियों का परम प्रेम उसी प्रेम का विकसित और परिमार्जित रूप है जिसका आभास हमे अभी अभी शामी जातियों को समर्पित संतानों में मिला है। इंजे महोदय एवं कतिपय अन्य मनीषियों ने एक ओर यूनान की गुह्य टोलियों में मादन-भाव का प्रसार और दूसरी ओर अफलातून के अलौकिक प्रेम के प्रतिपादन को देखकर, यह उचित समझा कि यूनान को ही मादन-भाव के प्रवर्तन का सारा श्रेय दिया जाय ; परंतु जैसा कि हम देख चुके हैं, उक्त गुध मंडलियों का संबंध किसी देश-विशेष से नहीं, प्रत्युत उस सत्त्व से है जिसकी प्रेरणा से सद्भावना का उदय और संवेदना का प्रसार होता है और मनुष्य-मात्र का जिस पर समान अधिकार है। अस्तु, सूफीमत के उद्भव के संबंध में यह ध्यान रखना चाहिए कि उसके मादन-भाव का उदय शामी जातियों के बीच में हुअा और फिर अपनी पुरानी भावना तथा धारणा की रक्षा के लिए सारग्राही सूफियों ने अन्य जातियों के दर्शन तथा अध्यात्म से सहा- यता ले धीरे धीरे एक नवीन मत का सृजन किया। सूफीमत के उद्भव को लेकर जो मतभेद चल पड़े हैं उनके मूल में इस तथ्य की अवहेलना ही दिखाई देती है कि लोग उसके समीक्षण में सर्वप्रथम उसकी भावना, सहज वासना और मूल {१) दी रेलिजन श्राव दी सेमाइट्स, पृ० ५१५ । (२) क्रिश्चियन मिस्टीसिज्म, पृ० ३६६, ३४६.५५ ।