पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२५२

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परिशिष्ट २३५ को मुसलमानों का पिदरी वतन मानते हैं। आदम के विषय में कहा जाता है कि उनके पतन का कारण गोधूम था। उनकी पत्नी हौवा ने एक दिन इबलीस के सुझाने पर उनसे दृढ़ आग्रह किया कि यह वह फल है जिसके प्रास्वादन से परम मंगल का विधान होता है। आदम अपनी प्रेयसी के इस अनुरोध को टाल ने सके। फलतः अल्लाह ने उन्हें स्वर्ग से खदेड़ दिया। पतित हो आदम २०० वर्ष तक दक्षिण अथवा सरन द्वीप में तप करते रहे। फिर जिवरील की प्रेरणा से अरब गए और वहाँ उनको हौवा मिली। हौवा के ऋतु स्नान के लिये जमजम का स्रोत निकला। अल्लाह की प्रेरणा से उसकी आराधना के लिये प्रादम ने काया का निर्माण किया और जिवरील ने उन्हें उनके पूजन की पद्धति बतला दी। हौवा आदम से दो वर्ष बाद मरी। बाद के बाद आदम का शव यरुशलेम खाया गया । संक्षेप में यही आदम का इतिहास है। अब इन प्रवादों के आधार पर हम अधिक से अधिक इतना ही कह सकते हैं कि आदम जातिविशेष के नेता थे। उनके समाज में स्त्री प्रधान थी। किसी गोधूम-प्रान्त के लिए उन्हें संग्राम करना पड़ा था। विजित होकर उन्हें दक्षिण या सरनद्वीप में 'शरण लेनी पड़ी थी और अन्त में विवश होकर उन्हें अरब जाना पड़ा और वहीं उनके मंगल का विधान हुआ। आराधना के लिए मक्के में काला बनवाया और उसमें लिंग की प्रतिष्ठा की। इधर वेद, ब्राह्मण, पुराण प्रभृति भारत के प्राचीन वाड्मय के अवलोकन से अवगत होता है कि किसी समय भारत में परिण जाति की प्रधानता थी। पार्यों के अाक्रमण से व्यग्र होकर अन्त में रसा की तलेटी से खसक कर पणियों को एक और सौवीर और बवेरू तथा दूसरी ओर बंग तथा दक्षिण को प्रस्थान करना पड़ा। धीरे-धीरे जब पार्यों का प्रसार पूर्व और दक्षिण में भी हो गया तब विवश होकर पणियों को समुद्र पार कर पश्चिम में बसना पड़ा । पणि जाति के समुचित समीक्षण (१) फल के विषय में शामियों में मतभेद है; पर मुसलिम गेहूँ को हो उक्त फल मानते है, बुद्धि या किसी अन्य फल को नही । (२) साइक्लोपीडिया बाय इसलाम, प्र. माग, पृ० १२७ ।