पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२५१

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२३४ तसव्युफ अथवा सूफीमत व्वुफ पर नहीं ; किन्तु जिन लोगों ने वेदान्त और तसव्वुफ का स्वतंत्र अध्ययन किया है उनकी दृष्टि में तसव्वुफ वेदांत का मधुर रूपान्तर ही है, कुछ और नहीं। इस रूपांतर की अवहेलना इतिहास के आधार पर नहीं हो सकती। प्रमाणों का परितः परिशीलन न कर सहसा यह कह बैठना कि तसव्वुफ पर भारत के प्रभाव को बढ़ाना आर्य-भक्तों का काम है व्यर्थ की वितंडा है, कुछ सत्य का निरूपण नहीं । तसव्वुफ को शामी विचार-परंपरा में बिल्कुल खपा देना असंभव है। उसके अध्यात्म को प्रार्यों का प्रसाद स्वीकार करना ही होगा। जो विचार-धारा किसी प्रबल प्रवाह में पड़ कर भी अपना रंग नहीं बदलती और अपने रूप पर स्थिर रहती है उसके स्रोत तथा प्रवाह का पता लगाना कुछ कठिन नहीं होता। रही इतिहास की साखी। इसके संबंध में निवेदन है कि इतिहास के आधार पर भी सिद्ध किया जा सकता है कि तसव्वुफ पर भारत का प्रभाव अति प्राचीन काल से सिद्ध है और इसे अनेक लोग स्वीकार भी करते पा रहे हैं। स्वयं इसलाम के भीतर कभी कभी हिंद-मत के नाम पर इसकी भर्सना की गई है और इसको अनिसलामी' घोषित कर दिया गया है। ठोस इतिहास पर विचार करने के पहले कतिपय उन प्रवादों पर भी ध्यान देना चाहिए जो प्रस्तुत विषय के विवेचन में सहायक हैं। सर्व प्रथम शामियों के आदि पुरुष बाबा आदम को लीजिए । उनके संबंध में सूफियों का कथन है- "अब आदम सबसे पहले हिंदुस्तान में उतरे और यहाँ उन पर वही आई तो यह समझना चाहिए कि यही वह मुल्क है जहाँस्नुदा की पहली वही नाजिल हुई।" इसलिये रसूल ने फरमाया- "मुझे हिंदुस्तान की तरफ से रब्बानी खुशबू आती है। इन 'रवायतों' पर विश्वास न करते हुए भी मौलाना सुलैमान नदवी भारत (१) वहाबी भाज भी तसव्वुफ को हिन्दुओं का मत समझते है और सफियों को बहे हनूद' तक कर देते है। (२) अरब और हिंदुस्तान के तालुकात, पृ० ३ । 1) 73