पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२४३

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२२६ तसव्वुफ अथवा सूफीमत मसीह का नाम अंकित करा लिया था। उस समय की यह धारणा सी हो गई थी कि प्रेमी अपराध नहीं कर सकता। ज्ञान के क्षेत्र में भी पूरी छानबीन हो रही थी। अमलरिक अद्वय का निरूपण कर प्रकृति की स्वतन्त्र सत्ता का निराकरण करता था तो एम्बर्ट जीवात्मा और परमात्मा में उष्णता और अग्नि किंवा सुरभि और पुष्प का संबंध स्थापित करता था। जान ममत्व और अहंकार को पाप का मूल कहता था। निष्कर्ष यह कि उस समय मसीही संत और सूफी क्या भक्ति- भाव, क्या विचार सभी क्षेत्रों में एक से हो रहे थे। उनमें जो कुछ अन्तर था वह संस्कार या श्रद्धा के कारण था । मसीहो मसीह और सूफी मुहम्मद को महबूब बताते थे ; पर वास्तव में थे दोनों परम प्रियतम के वियोगी। सूफी अमरदपरस्त थे और किसी के हुस्न को जमाल का द्योतक समझते थे, पर मसीही संत मसीह या मरि. यम-परस्त थे और उन्हीं के प्रेम को परमात्मा का पूजन समझते थे। उनमें केवल प्रालंबन के स्वरूप की भिन्नता थी; किसी भक्ति के मूल भाव की नहीं। उपासना के क्षेत्र में भी मसीही सूफियों की पद्धति पर चल रहे थे। उनकी जिक्र की पद्धति मसीही संतों को प्रिय लगती थी' । लल्ल ने सूफियों की देखा-देखी परमेश्वर के शत नामों की उद्भावना की और उन पर एक पोथी भी लिख डाली। उसने संगीत पर भी ध्यान दिया। पादरियों के शिक्षण के लिये लल्ल ने एक कालेज का विधान कर मसीही संतों के लिये मुसलिम साहित्य का द्वार खोल दिया। प्राची-साहित्य का टोलेडो में जो अध्ययन हो रहा था उसका मुख्य उद्देश्य था पादरियों का अन्य शामी मतों से अभिज्ञ होना और वाद-विवाद में उनसे विजय प्राप्त कर लेना। इसलिये मसीही पंडितों को इसलामी साहित्य का परिशीलन करना पड़ा। तसव्वुफ के अधार पर मसीहियों ने मसीही मत का इस ढब से प्रकाशन किया कि मसीही मसीह के भक्त बने रहे और इसलाम का भय भी जाता रहा । उस समय मार्टीन से अरबी के प्रकांड पंडित और लल्ल से मेधावी भक्त मसीही संघ के विधायक थे जो तसव्वुफ के आधार पर मसीही मत को मधुर बना रहे थे। (१) दी लेगसी प्राव इसलाम, पृ० ११५ ।