पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२४२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

परिशिष्ट २२५ आध्यात्मिक अनुभूति भी साथ ही साथ अधिक गंभीर और सघन होती जाती थी, और वह उसके हुस्न के सहारे जन्नत की और बढ़ता जा रहा था। उसने भी अरबी की तरह अपनी कविता का रहस्य खोला, इश्क मजाजी के परदे में इश्क हकीकी का जन्नाल देखा। दांते ने स्वर्ग, नरक और साक्षात्कार प्रादि का प्रतिपादन जिस ढंग से किया वह अरबी वा अनुकर ए मा प्रतीत होता है। उसके ‘परगेटरी' के अवस्थान में मुसलिम प्राव ( बरजन्न ) लक्षित होता है। दातर स्वयं न्वीकार करता है कि इटली में कविता का उत्कर्ष उन शासकों के समय में हुआ जी मुसलिम कविता के प्रशंसक और इसलामी साहित्य के प्रेमी थे। कुछ भी हो, दांत के वर्ग-गमन में मुहम्मद साहब के मिश्रा राज ( स्वर्गारोहण ) का गान होता है और उसके प्रेम तथा अन्य बातों में इसलामी प्रवादों एवं सूफियों के विचारों का आभास मिलता है। दांते के आधार पर निर्विवाद कहा जा सकता है कि मसीही मला तथा समाजों पर सूफियों का प्रभात्र कितना गहा, 'ध्यापक और उदार पड़ा। न जाने कितने कवियों ने प्रेम का सालापा और राफी कवियों के मुर में सुर मिनाया। उनके इश्क होकी के गीतों का हमें यथा पत्ता ! हमारे लिये तो एक दाने ही पर्याप्त है। स्पेन, सिरानी और इटली तक ही यह प्रेम-प्रवाह सीमित न रहा । इसने तो सारे यूरोप को प्रेम से आप्लादित कर दिया । फ्रांस, जर्मनी प्रभृति देशों में भी प्रेम के पुजारी उत्पन्न हो गए। कुछ तो मसीह माननारी मरियम के प्रेम में मग्न हुए, उनकी विरह-वेदना में तड़प उठे और अल सत्य-मिशाला में लगे। उनके प्रेम-प्रवाह और तत्त्वचिंतन के विश्लेषण से अवगत हो जाता है कि उनमें सृफियों का कितना रंग जमा हैं । समां का निश्चय है कि उइंड और तरुण हृदय विना प्रेम के नहीं फलना। उसका प्रेम इतना उन्मत और प्रबल था कि उसने अपनी छाती में ( १ ) मी श्राव रसलाम, पृ० ५४ । ५० २२७३ (५)निस्चियन मिस्टीसाम, १० १७२ । " " 937