परिशिष्ट १ प्रियतम से आँखमिचौनी खेलता है, और अन्त में उसी में लुप्त भी हो जाता है। वह संसार में सच्चे बंधुभाव का प्रचार करता और प्राणिमात्र को प्रेम का संगीत सुनाता है। इसलाम की प्रगति पर ध्यान देने से अवगत होता है कि उचित अवसर पर यदि सूफी इसलामी संप्रदायों में प्रेम का प्रचार न करते और आरिफ वादियों का मुंह तर्क से बंद नहीं कर देते तो शायद इसलाम का अंत उसीके बंदे परस्पर लड़-भिड़कर सहसा कर बैठते और उसके नाम के कुछ निशान ही शेष रह जाते। इसलाम जिस रूप में आज प्रचलित और प्रतिष्ठित है उसमें सूफियों का कितना योग है यह हम निश्चित रूप से ठीक-ठीक नहीं कह सकते ; पर इतना तो मानना ही हागा कि वहाबियों के धार आंदोलन में कुछ सार अवश्य है। इसलाम के प्रचार में दरवेशो का पूरा हाथ था तो इसलाम के दर्शन में ज्ञानियों का पूरा योग है। इतना ही नहीं, इसलाम के साहित्य में प्रेमियों का पूरा प्रलाप है, इसलाम की उपासना में पीरोंका विशेष ध्यान है, इसलाम की कुशल में मजारों का पूरा विधान है, कहाँ तक कहें, इसलाम के रसूल और अल्लाह में भी तो सूफियों का पूरा पूरा नूर और हक है ? संक्षेप में कहने का सार यह कि सूफी अपने को 'वातिन' और मुसलिम को 'जाहिर' का भक्त समझते हैं। आधुनिक इसलाम में बातिन और जाहिर एक में मिल गए हैं। अाज अरब का उम्मी रसूल कोरा रसूल ही नहीं है बल्कि चह तो अल्लाह का 'नूर' और इसलाम का 'कुरब' या 'इंसानुल कामिल भी बन गया है । संसार उसी के इशारे पर चल रहा है। सचमुच इसलाम मे तसव्वुफ वह वर्षण है जो किसी भयंकर आँधी को शांत कर पृथिवी को सरस और प्रकृति को प्रसन्न कर देता है और जिसके प्रभाव से सृष्टि हरी-भरी हो लहलहा उठती है और जिसके प्रवाह से फटे हृदय भी घुल-मिलकर एक हो जाते है । इसलाम में तसव्वुफ प्रतिदिन बढ़ता रहा और उसके मलहम से विजित जातियों का घाव भरता गया। लोग उसकी मुरीदी करने लगे। मसीही जिनकी सभ्यता, संस्कृति और साहित्य का आज पता ही नहीं चलता, जिनकी बात ही आज प्रमाण मानी जाती है जो अपने को सत्य का ठेकेदार और शील का आदर्श समझते हैं, उन पर भी सूफियों का ऋण लदा । उनके बाप-दादों ने भी उनकी मुरीदी
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