पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२२९

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत मग्न हैं। प्रत्येक पीर की ओर से उसके कुछ खलीफे अपने संप्रदाय के प्रचार में लगे हैं और प्रकारांतर से इसलाम का हित कर रहे हैं। ख्वाजा हसन निजामी (चिश्ती ) का उल्लेख भर पर्याप्त होगा। हमें इस स्थल पर इस प्रकार के प्रचार पर विचार करने की आवश्यकता नहीं। जरूरत इस बात की है कि हम थोड़े में यह दिखा दें कि तसव्वुफ के प्रचार का प्रभाव स्वयं इसलाम तथा अन्य मतों पर क्या पड़ा ; अथवा किस प्रकार सूफियों ने मानव जाति को अपना ऋणी बनाया। सो, तसव्वुफ के प्रभाव पर विचार करते समय यह स्मरण रखना चाहिए कि तसव्वुफ का सबसे व्यापक और पुष्ट प्रभाव स्वयं इसलाम पर पड़ा । मौलाना रूमी । कुरान से जो गूदा निकाला, सूफी उसी के सेवन से इसलाम को मधुमय तथा सरस बनाते रहे। यदि वे ऐसा न करते तो मुसलिम उन्हीं हड्डियों के लिये परस्पर लड़ते रहते जिन्हें उन्होंने अलग फेंक दिया था। मुस्लिम शासक जब अमरदपरस्ती में मस्त थे, मुसलिम सेना जब भोग-विलास और हाव-भाव में मग्न थी, मुला-काजी जब घोर उपद्रव खड़ा करने में लग्न थे, जनसामान्य के लिये जब कोई निश्चित मार्ग न रह गया था, तब उस घोर परिस्थिति में, यदि सूफी आगे न बढ़ते तो कौन मानव-जीवन को सरस और आनंदमय बनाता ? कौन निरीह जनता की पुकार सुनता ? निःसंदेह उस समय सूफियों ने घूम घूम कर जो प्रेम का प्रचार किया वही इसलाम के मंगल का स्तंभ हुआ और उसी ने इसलाम के भारी महल को ढहने से बचा लिया। उनके अथक प्रयत्न से प्रायः सभी दीनदार मुसलमान किसी न किसी सूफो-संघ के भीतर आ गए और उस परम प्रियतम के वियोग में उसके 'गैर-इस- लामी' बंदों पर भी रहम करने लगे। प्रेम के उपासक सूफियों ने जनता को अच्छी तरह सुझा दिया कि अल्लाह जीवमात्र का शासक और प्रत्येक हृदय का बालंबन है। उसके साक्षात्कार के लिये दिल को साफ रखने की जरूरत है, किसी रसूल की रट लगाने की नहीं । खुदी को रखते हुए खुदा का नाम लेना अपने को गुमराह करना है, अल्लाह का पाराधन नहीं । सूफियों के प्रयल से तसव्वुफ घर-घर पहुँच गया और लोगों की अमिरूचि भी इसकी ओर अधिक दिखाई पड़ने लगी। पर 'मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना' के अनुसार