पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२२४

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भविष्य २०७ निवृत्तिमार्ग के उपासकों को विरति का पक्ष लेना अनिवार्य हो जाता है, और इसके फलस्वरूप वे सामान्य रति की भर्त्सना भी करने लगते हैं। परतु उनमें जो स्वभाव से सहृदय तथा भावुक हैं और किसी प्रकार निवृत्तिप्रधान मार्ग में दीक्षित भी हो गए हैं उनके लिये तो अलौकिक रति का राग श्रालापना ही अवश्यंभावी है। यद्यपि इसलाम प्रवृत्तिप्रधान मार्ग है तथापि सूफियों की प्रवृत्ति इसलाम की प्रवृत्ति से सर्वथा मिन है । वह वस्तुतः प्रवृत्तिप्रधान नहीं कही जा सकती । सूफी भी वास्तव में संसार से विरक ही होते हैं और रति के प्रावरण में विरति अथवा परम रति का ही प्रतिपादन करते हैं । संसार उनका साध्य नहीं साधनमात्र है। विज्ञान के प्रभाव अथवा उद्योग के उदय से पश्चिमीय सभ्यता का ध्येय यद्यपि मसीही उद्देश्यों से सर्वथा भिन्न हो गया है तथापि उसमें मसीही संस्कारों के अवशिष्ट आज भी बने हैं। संसार के कोने कोने में जिस पश्चिमीय सभ्यता का प्रकाश फैल रहा है उससे सूफी भी अछूते नहीं रह सकते। इसमें तो सन्देह नहीं कि आज-कल यह धारणा प्रबल हो जब पकड़ती जा रही है कि संसार से विरक्त हो एकांत में योग-साधना चित्त की दुर्बलता है और स्त्रीजाति की भर्सना करना तो पुराना खूसटपन । यद्यपि सूफियों ने कभी भी संन्यास का पक्ष नहीं लिया और सदैव 'प्रेम-पीर' का ही प्रतिपादन किया तथापि उनके प्रेम-प्रलाप में त्याग का भाव बराबर बना रहा : प्रेमीने प्रियतमके अतिरिक्त किसी अन्य को न जाना। और माजी में हकीकी का आभास मिलता रहा । पर श्राधुनिक परिस्थिति को देखते हुए यह कहने का साहस नहीं होता कि भविष्य में भी सूफी अपने इश्क को इसी रूप में अंकित करते रहेंगे और उसकी प्रणाली में किसी प्रकार का परिवर्तन न होगा। सूफियों के प्रेम-प्रसार में परदे का भी पूरा हाथ है। पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से परदा प्रतिदिन उठता जा रहा है और लोग प्रत्यक्षप्रिय होते जा रहे हैं। ऐसी. दशा में सूफियों के प्रेम-प्रदर्शन में परदे का क्या महत्त्व होगा, यह ठीक ठीक नहीं कहा जा सकता। किंतु इतना तो प्रकट है कि वह प्रतीक के रूप में सब भी पड़ा रहेगा। सूफियों के प्रेम-प्रसार की संभावना का प्रधान कारण यह है कि इस युग की प्रवृत्ति उनके अनुकूल होती जा रही है। आजकल हम देखते हैं कि एक और तो