पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२२०

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भविष्य २०३ मनोविज्ञान के आक्रमण से मजहबी अनुभूतियों को सुरक्षित रखने का प्रयत्न जेम्स ने बड़ो तत्परता से किया और संज्ञा के साथ ही 'अंतः संज्ञा (सबकांशसनेम) ज.सूत्र निकाला। इसमें संदेह नहीं कि जैम्स के व्याख्यानों से संतों तथा धार्मिकों में प्रोत्साहन मिला और वे संतों की अलोकिक वालो के प्रतिपादक बन गए. परंतु ज्ञान के शुद्ध उपासकों को जेम्स के व्याख्यानों में शांति न मिली। उनकी समझ यह बात न श्रा सकी कितःसंज्ञा अलौकिक किस न्याय से सिद्ध होती है । द्यपि श्री हाकिंग ने जेम्भ के सिद्धांतों का परिमार्जन किया और उसकी त्रुटियों को देखाकर अध्यात्म को मनोविज्ञान से अलग रखने का विचार किया, तथापि उसमें की कुछ विद्वानों को दोष दिखाई दिया और उससे सहमत न हो सके। और अंत में श्री लूबा' ने तो यहाँ तक वह दिया कि वास्तव में मनोविज्ञान की दृष्टि से धार्मिक अनुभूतियाँ ईश्वर की अभिव्यंजना नहीं प्रत्युत मनुष्य की ही अभिव्यंजना है । कहने का तात्पर्य यह है कि आधुनिक मनोविज्ञान संतो की अनुभूतियों में किसी अलौकिक तत्त्व का हाथ नहीं देखता अपितु उनकी प्रत्येक बात को मानस-शास्त्र के भीतर सिद्ध कर देना चाहता है। मनोविज्ञान और शुद्ध तत्त्व-चिंतन ने जितना मसीही सलों को व्यग्र किया उतना सूफियों को कभी नहीं। कारण प्रत्यक्ष है। प्रथम तो मुसलिम प्रदेशों में विज्ञान का अभी उतना प्रचार नहीं हुआ जितना मसीही देशों में है, द्वितीय यह कि सूफियों ने सदा से मजाजी के भीतर ही हकीकी का साक्षात्कार किया है। उनकी दृष्टि में लौकिक बाट का रोड़ा नहीं, अलौकिक का सोपान है। शामी-संकीर्णता को (१) दी स इकालाजी श्राव रेलिजस मिस्टीप्सीज्म, पृ० ३१८ । (?) Psychology rejects the doctrine of an 'Unconcious nind' or 'subconcious' because all the empirically observed phenomnas which the mystics seek to base the doctrines, are easily explicable on hypotheses which are already in use and which are indispensable to psychology." ( Mysticism, Freudeansim & Scientific Psychology. P. 168.)