पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२२

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कि इसका लाक से कुछ संबंध ही न रह गया । प्रेम के सुनहरे पंख पर बैठकर लोग न जाने कहाँ कहाँ की झाँक्री लेने लगे। बात यह है कि मसीह का मूलमंत्र विराग है । सूफियों के प्रेम-पच की प्रबलता अथवा उनके राग की वर्षा से जब यूरोप श्रामवित हो गया तब उसे मसीही मत में भी विरति के साथ रति की सूझी और फलतः उसका भी सत्कार करना पड़ा। अब प्रेम में पाषंड का प्रचार होने लगा। अस्तु, आजकल प्रेम का लक्ष्य प्रेम ही जो सिद्ध किया जाता है, जगह जगह स्वर्गीय प्रेम के जो गीत गाए जाते हैं, प्रेम को दुनिया से जो अलग खड़ा किया जाता है, उसका प्रधान कारण उक्त धर्म-संकट ही है। मसीह की दुलहिनों अथवा भक्त संतों ने प्रेम को जो अलौकिक रूप दिया उसके मूल में वही रति भाव है जिसको लेकर सूफी साधना के क्षेत्र में उतरे और शामी सुधारकों के कट्टर विरोध के कारण उसको कुछ दिव्य बनाकर जनता के सामने रखते रहे । प्रेम के संबंध में यह सदैव स्मरण रखना चाहिए कि वह एक मानसी प्रक्रिया है जिसका ध्येय आनंद है। अंतरायों के कारण रति-व्यापार में जितना ही अधिक विन्न पड़ता है, काम-वासना और भी परिमार्जित हो उतना ही प्रखर प्रेम का रूप धारण करती है । इसी परिमार्जन के प्रसाद से रति को प्रेम की पदवी प्राप्त होती है। देवपरक होने पर यही रति भक्ति का रूप धारण करती है। प्रवृत्ति-मार्गी इसलाम में विवाह प्राधा स्वर्ग समझा जाता है, अतः प्रेममार्गी सूफियों को रति के संबंध में इतना ढोंग नहीं रचना पड़ता जितना निवृत्ति-मार्गी मसीही संतों और उन्हीं की देखादेखी आधुनिक प्रेम-पंथी कवियों को प्रतिदिन करना पड़ता है। सूफियों ने जिस सहज रति पर अपना मत खड़ा किया उसका विरोध बहुत दिनों से शामी जातियों में हो रहा था। आदम के स्वर्ग से निकाले जाने की कथा के मूल में रति का निषेध स्पष्ट झलकता है। हौवा की प्रेरणा से आदम का पतन हुआ। स्त्री- पुरुष का सहज संबंध गहित समझा गया । फिर क्या था, शामी जातियों में रति को निंदा प्रारम्भ हुई और आगे चलकर वह मसीही मत में पाखंड में परिणत हो (1) ए शार्ट हिस्टरी भाव वीमेन पृ० २५०;दो लगसी आव दी मिडिल एज,पृ०४०७ ।