पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२१८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भविष्य दत्तचित्त हुआ । मानस शास्त्र का पालोडन उसके लिये अनिवार्य होगया । अध्यात्म के क्षेत्र में जिन उलझनों के कारण इंट्यूशन वा प्रज्ञा की प्रतिष्ठा हुई, मनोविज्ञान में उन्हीं मजहबी बातों के प्राग्रह से 'सबकांशस' किंवा 'अन्तःसंज्ञा' को महत्व मिला 'इंट्यूशन' और 'सबकांशस' के आधार पर धार्मिक पाषंड और मजबी मनसूबे एक बार फिर खड़े हुए ; पर परिस्थिति विज्ञान के इतने अनुकूल हो चुकी थी कि फिर उनकी धाक न जमी और लोग संतों के संदेशों तथा कचियों की वाणियो' को तर्क पर कसने लगे। उनकी सचाई के लिये विज्ञान की सनद आवश्यक हो गई। प्रज्ञा, म्वारिफ, एवं इंट्यूशन के आधार पर जिस अनुभूति का साक्षात्कार का विधान किया जाता है उसके संबंध में भूलना न होगा कि वह बुद्धि और विवेक के प्रतिकूल नहीं होता । यद्यपि अंधविश्वासी भक्ता ने बुद्धि की पूरी निंदा की है और शामियों ने तो उसे इंसान के पतन का कारण ही मान लिया है तथापि बुद्धि ने इंसान का पिंड कभी नहीं छोड़ा और अत में निश्चित हुआ कि विज्ञान के आधार पर बुद्धि की गवाही से ही किसी बात को सत्य की प्रतिष्ठा दी जाय । फलतः जहाँ कहीं हमारी बुद्धि चकित हो आगे न बढ़ सकेगी और हमें उस दिव्य धाम की झलक दिखाई सी पड़ेगी वहाँ हम अपनी दृष्टि को ठीक तभी कह सकेंगे जब हमें उसमें किसी प्रकार का संदेह न रह जायगा और हमारी जिज्ञासा भी तृप्त हो जायगी। यदि हम ऐसा नहीं करते तो इसका अर्थ है कि हम अपनी प्रतिभा और मननशीलता की केवल उपेक्षा ही नहीं करते बल्कि साक्षात्कार के क्षेत्र में पाषंड का प्रचार करते और इसके फलस्वरूप मानव जीवन को कलंकित भी करते हैं। जिस जाति अथवा समाज ने बुद्धि एवं विवेक की उपेक्षा कर केवल आसमानी किताबों का विश्वास किया और अपनी वासनाओं के क्रूर तांडव को ही ईश्वर का आदेश समझ लिया उसके साक्षा- स्कार का महत्व ही क्या ? विज्ञान तथा विश्लेषण के इस कठोर युग में बुद्धि का विरोध कर सिद्ध बनने की सनक अधिक दिन तक नहीं ठहर सकती। इलहामको शीघ्र ही अपना रंग बदलना होगा। निरे इलहाम से असंतुष्ट हो सूफियों ने किस प्रकार म्वारिफ की शरण ली और उसके आधार पर किस प्रकार अपना एक अलग अध्यात्म खड़ा किया,इसका बहुत कुछ